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"एक तिनका / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’" के अवतरणों में अंतर
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− | मैं | + | मैं घमण्डों में भरा ऐंठा हुआ । |
− | एक दिन जब था | + | एक दिन जब था मुण्डेरे पर खड़ा । |
− | आ अचानक दूर से उड़ता हुआ | + | आ अचानक दूर से उड़ता हुआ । |
− | एक तिनका आँख में मेरी | + | एक तिनका आँख में मेरी पड़ा ।1। |
− | मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा | + | मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा । |
− | लाल होकर आँख भी दुखने | + | लाल होकर आँख भी दुखने लगी । |
− | मूँठ देने लोग कपड़े की लगे | + | मूँठ देने लोग कपड़े की लगे । |
− | ऐंठ बेचारी दबे | + | ऐंठ बेचारी दबे पाँवों भगी ।2। |
− | जब किसी ढब से निकल तिनका गया | + | जब किसी ढब से निकल तिनका गया । |
− | तब 'समझ' ने यों मुझे ताने | + | तब 'समझ' ने यों मुझे ताने दिए । |
− | ऐंठता तू किसलिए इतना रहा | + | ऐंठता तू किसलिए इतना रहा । |
− | एक तिनका है बहुत तेरे | + | एक तिनका है बहुत तेरे लिए ।3। |
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15:37, 23 जनवरी 2015 के समय का अवतरण
मैं घमण्डों में भरा ऐंठा हुआ ।
एक दिन जब था मुण्डेरे पर खड़ा ।
आ अचानक दूर से उड़ता हुआ ।
एक तिनका आँख में मेरी पड़ा ।1।
मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा ।
लाल होकर आँख भी दुखने लगी ।
मूँठ देने लोग कपड़े की लगे ।
ऐंठ बेचारी दबे पाँवों भगी ।2।
जब किसी ढब से निकल तिनका गया ।
तब 'समझ' ने यों मुझे ताने दिए ।
ऐंठता तू किसलिए इतना रहा ।
एक तिनका है बहुत तेरे लिए ।3।