"कहो हिन्दुस्ताँ की जय / मख़दूम मोहिउद्दीन" के अवतरणों में अंतर
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+ | कहो हिन्दुस्ताँ की जय | ||
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+ | क़सम है ख़ून से सींचे हुए रंगी गुलिस्ताँ की । | ||
+ | क़सम है ख़ूने दहकाँ की, क़सम ख़ूने शहीदाँ की । | ||
+ | ये मुमकिन है कि दुनिया के समुन्दर ख़ुश्क हो जाएँ | ||
+ | ये मुमकिन है कि दरिया बहते-बहते थक के सो जाएँ । | ||
+ | जलाना छोड़ दें दोज़ख़ के अंगारे ये मुमकिन है। | ||
+ | रवानी तर्क कर दे बर्क़ के धारे ये मुमकिन है । | ||
+ | ज़मीने पाक अब नापाकियों की हो नहीं सकती | ||
+ | वतन की शम्मे आज़ादी कभी गुल हो नहीं सकती । | ||
− | + | कहो हिन्दुस्ताँ की जय | |
+ | कहो हिन्दुस्ताँ की जय | ||
− | + | वो हिन्दी नऔजवाँ याने अलम्बरदारे आज़ादी | |
− | + | वतन का पासबाँ वो तेग-ए- जौहरदारे आज़ादी । | |
+ | वो पाकीज़ा शरारा बिजलियों ने जिसको धोया है | ||
+ | वो अंगारा के जिसमें ज़ीस्त ने ख़ुद को समोया है । | ||
+ | वो शम्म-ए-ज़िन्दगानी आँधियों ने जिसको पाला है | ||
+ | एक ऐसी नाव तूफ़ानों ने ख़ुद जिसको सम्भाला है । | ||
+ | वो ठोकर जिससे गीती लरज़ा बरअन्दाम रहती है । | ||
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+ | कहो हिन्दुस्ताँ की जय | ||
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+ | वो धारा जिसके सीने पर अमल की नाव बहती है । | ||
+ | छुपी ख़ामोश आहें शोरे महशर बनके निकली हैं । | ||
+ | दबी चिनगारियाँ ख़ुरशीदे ख़ावर बनके निकली हैं । | ||
+ | बदल दी नौजवाने हिन्द ने तक़दीर ज़िन्दाँ की | ||
+ | मुजाहिद की नज़र से कट गई ज़ंजीर ज़िन्दाँ की । | ||
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+ | कहो हिन्दुस्ताँ की जय | ||
+ | कहो हिन्दुस्ताँ की जय''' | ||
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+ | '''शब्दार्थ''' | ||
+ | तर्क : बन्द | ||
+ | बर्क़ : बिजली | ||
+ | तेग : तलवार | ||
+ | जौहरदार : पराक्रमी | ||
+ | ज़ीस्त : जीवन | ||
+ | गीती : संसार | ||
+ | लरज़ा बरअन्दाम : काँपकर सुन्न हो जाना | ||
+ | शोरे महशर : कयामत के दिन का शोर | ||
+ | ख़ुरशीदे ख़ावर : चमकीला सूरज | ||
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10:18, 4 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण
कहो हिन्दुस्ताँ की जय
कहो हिन्दुस्ताँ की जय
क़सम है ख़ून से सींचे हुए रंगी गुलिस्ताँ की ।
क़सम है ख़ूने दहकाँ की, क़सम ख़ूने शहीदाँ की ।
ये मुमकिन है कि दुनिया के समुन्दर ख़ुश्क हो जाएँ
ये मुमकिन है कि दरिया बहते-बहते थक के सो जाएँ ।
जलाना छोड़ दें दोज़ख़ के अंगारे ये मुमकिन है।
रवानी तर्क कर दे बर्क़ के धारे ये मुमकिन है ।
ज़मीने पाक अब नापाकियों की हो नहीं सकती
वतन की शम्मे आज़ादी कभी गुल हो नहीं सकती ।
कहो हिन्दुस्ताँ की जय
कहो हिन्दुस्ताँ की जय
वो हिन्दी नऔजवाँ याने अलम्बरदारे आज़ादी
वतन का पासबाँ वो तेग-ए- जौहरदारे आज़ादी ।
वो पाकीज़ा शरारा बिजलियों ने जिसको धोया है
वो अंगारा के जिसमें ज़ीस्त ने ख़ुद को समोया है ।
वो शम्म-ए-ज़िन्दगानी आँधियों ने जिसको पाला है
एक ऐसी नाव तूफ़ानों ने ख़ुद जिसको सम्भाला है ।
वो ठोकर जिससे गीती लरज़ा बरअन्दाम रहती है ।
कहो हिन्दुस्ताँ की जय
कहो हिन्दुस्ताँ की जय
वो धारा जिसके सीने पर अमल की नाव बहती है ।
छुपी ख़ामोश आहें शोरे महशर बनके निकली हैं ।
दबी चिनगारियाँ ख़ुरशीदे ख़ावर बनके निकली हैं ।
बदल दी नौजवाने हिन्द ने तक़दीर ज़िन्दाँ की
मुजाहिद की नज़र से कट गई ज़ंजीर ज़िन्दाँ की ।
कहो हिन्दुस्ताँ की जय
कहो हिन्दुस्ताँ की जय
शब्दार्थ
तर्क : बन्द
बर्क़ : बिजली
तेग : तलवार
जौहरदार : पराक्रमी
ज़ीस्त : जीवन
गीती : संसार
लरज़ा बरअन्दाम : काँपकर सुन्न हो जाना
शोरे महशर : कयामत के दिन का शोर
ख़ुरशीदे ख़ावर : चमकीला सूरज