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"मौन ही मुखर है / विष्णु प्रभाकर" के अवतरणों में अंतर

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धम-धमाधम, धम-धमाधम, धम-धमाधम
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कितनी सुन्दर थी
लो आ गया एक और नया वर्ष
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वह नन्हीं-सी चिड़िया
ढोल बजाता, रक्त बहाता
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कितनी मादकता थी
हिंसक भेड़ियों के साथ
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कण्ठ में उसके
ये वे ही भेड़िए हैं
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जो लाँघ कर सीमाएँ सारी
डर कर जिनसे
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कर देती थी आप्लावित
की थी गुहार आदिमानव ने
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विस्तार को विराट के
अपने प्रभु से-
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कहते हैं
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वह मौन हो गई है-
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पर उसका संगीत तो
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और भी कर रहा है गुंजरित-
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तन-मन को
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दिगदिगन्त को
  
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इसीलिए कहा है
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महाजनों ने कि
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मौन ही मुखर है,
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कि वामन ही विराट है ।
 
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11:08, 16 अगस्त 2010 के समय का अवतरण

कितनी सुन्दर थी
वह नन्हीं-सी चिड़िया
कितनी मादकता थी
कण्ठ में उसके
जो लाँघ कर सीमाएँ सारी
कर देती थी आप्लावित
विस्तार को विराट के

कहते हैं
वह मौन हो गई है-
पर उसका संगीत तो
और भी कर रहा है गुंजरित-
तन-मन को
दिगदिगन्त को

इसीलिए कहा है
महाजनों ने कि
मौन ही मुखर है,
कि वामन ही विराट है ।