"वर्षा के मेघ कटे / गोपीकृष्ण 'गोपेश'" के अवतरणों में अंतर
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बाग़ में बग़ीचों में और तरी हो गई है- | बाग़ में बग़ीचों में और तरी हो गई है- | ||
− | राहों पर मेंढक अब सदा | + | राहों पर मेंढक अब सदा नहीं मिलते हैं |
पौधों की शाखों पर काँटे तक खिलते हैं | पौधों की शाखों पर काँटे तक खिलते हैं | ||
चन्दा मुस्काता है; | चन्दा मुस्काता है; |
18:34, 31 मार्च 2011 के समय का अवतरण
वर्षा के मेघ कटे-
रहे-रहे आसमान बहुत साफ़ हो गया है,
वर्षा के मेघ कटे !
पेड़ों की छाँव ज़रा और हरी हो गई है,
बाग़ में बग़ीचों में और तरी हो गई है-
राहों पर मेंढक अब सदा नहीं मिलते हैं
पौधों की शाखों पर काँटे तक खिलते हैं
चन्दा मुस्काता है;
मधुर गीत गाता है-
घटे-घटे,
अब तो दिनमान घटे !
वर्षा के मेघ घटे !!
ताल का, तलैया का जल जैसे धुल गया है;
लहर-लहर लेती है, एक राज खुल गया है-
डालों पर डोल-डोल गौरैया गाती है
ऐसे में अचानक ही धरती भर आती है
कोई क्यों सजता है
अन्तर ज्यों बजता है
हटे-हटे
अब तो दुःख-दाह हटे !
वर्षा के मेघ कटे !!
साँस-साँस कहती है- तपन ज़र्द हो गई है-
प्राण सघन हो उठे हैं, हवा सर्द हो गई है-
अपने-बेगाने
अब बहुत याद आते हैं
परदेसी-पाहुन क्यों नहीं लौट आते हैं ?
भूलें ज्यों भूल हुई
कलियाँ ज्यों फूल हुईं
सपनों की सूरत-सी
मन्दिर की मूरत-सी
रटे-रटे
कोई दिन-रैन रटे ।
वर्षा के मेघ कटे ।