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"हरिजन गाथा / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर

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|संग्रह=खिचड़ी विप्लव देखा हमने / नागार्जुन
 
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(एक)
 
(एक)
  
 
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ऐसा तो कभी नहीं हुआ था !
ऎसा तो कभी नहीं हुआ था !
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महसूस करने लगीं वे
 
महसूस करने लगीं वे
 
 
एक अनोखी बेचैनी
 
एक अनोखी बेचैनी
 
 
एक अपूर्व आकुलता
 
एक अपूर्व आकुलता
 
 
उनकी गर्भकुक्षियों के अन्दर
 
उनकी गर्भकुक्षियों के अन्दर
 
 
बार-बार उठने लगी टीसें
 
बार-बार उठने लगी टीसें
 
 
लगाने लगे दौड़ उनके भ्रूण
 
लगाने लगे दौड़ उनके भ्रूण
 
 
अंदर ही अंदर
 
अंदर ही अंदर
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ऐसा तो कभी नहीं हुआ था
  
ऎसा तो कभी नहीं हुआ था
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ऐसा तो कभी नहीं हुआ था कि
 
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हरिजन-माताएँ अपने भ्रूणों के जनकों को
 
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ऎसा तो कभी नहीं हुआ था कि
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हरिजन-माताएं अपने भ्रूणों के जनकों को
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खो चुकी हों एक पैशाचिक दुष्कांड में
 
खो चुकी हों एक पैशाचिक दुष्कांड में
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ऐसा तो कभी नहीं हुआ था...
  
ऎसा तो कभी नहीं हुआ था...
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ऐसा तो कभी नहीं हुआ था कि
 
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ऎसा तो कभी नहीं हुआ था कि
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एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं--
 
एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं--
 
 
तेरह के तेरह अभागे--
 
तेरह के तेरह अभागे--
 
 
अकिंचन मनुपुत्र
 
अकिंचन मनुपुत्र
 
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ज़िन्दा झोंक दिये गए हों
ज़िन्दा झोंक दिये गये हों
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प्रचण्ड अग्नि की विकराल लपटों में
 
प्रचण्ड अग्नि की विकराल लपटों में
 
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साधन सम्पन्न ऊँची जातियों वाले
साधन सम्पन्न ऊंची जातियों वाले
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सौ-सौ मनुपुत्रों द्वारा !
 
सौ-सौ मनुपुत्रों द्वारा !
 
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ऐसा तो कभी नहीं हुआ था...
ऎसा तो कभी नहीं हुआ था...
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ऎसा तो कभी नहीं हुआ था कि
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ऐसा तो कभी नहीं हुआ था कि
 
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महज दस मील दूर पड़ता हो थाना
 
महज दस मील दूर पड़ता हो थाना
 
 
और दारोगा जी तक बार-बार
 
और दारोगा जी तक बार-बार
 
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ख़बरें पहुँचा दी गई हों संभावित दुर्घटनाओं की
ख़बरें पहुंचा दी गई हों संभावित दुर्घटनाओं की
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और, निरन्तर कई दिनों तक
 
और, निरन्तर कई दिनों तक
 
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चलती रही हों तैयारियाँ सरेआम
चलती रही हों तैयारियां सरेआम
+
 
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(किरासिन के कनस्तर, मोटे-मोटे लक्क्ड़,
 
(किरासिन के कनस्तर, मोटे-मोटे लक्क्ड़,
 
 
उपलों के ढेर, सूखी घास-फूस के पूले
 
उपलों के ढेर, सूखी घास-फूस के पूले
 
+
जुटाए गए हों उल्लासपूर्वक)
जुटाये गए हों उल्लासपूर्वक)
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और एक विराट चिताकुंड के लिए
 
और एक विराट चिताकुंड के लिए
 
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खोदा गया हो गड्ढा हँस-हँस कर
खोदा गया हो गड्ढा हंस-हंस कर
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और ऊँची जातियों वाली वो समूची आबादी
 
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और ऊंची जातियों वाली वो समूची आबादी
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आ गई हो होली वाले 'सुपर मौज' मूड में
 
आ गई हो होली वाले 'सुपर मौज' मूड में
 
 
और, इस तरह ज़िन्दा झोंक दिए गए हों
 
और, इस तरह ज़िन्दा झोंक दिए गए हों
 
  
 
तेरह के तेरह अभागे मनुपुत्र
 
तेरह के तेरह अभागे मनुपुत्र
 
 
सौ-सौ भाग्यवान मनुपुत्रों द्वारा
 
सौ-सौ भाग्यवान मनुपुत्रों द्वारा
 
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ऐसा तो कभी नहीं हुआ था...
ऎसा तो कभी नहीं हुआ था...
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ऐसा तो कभी नहीं हुआ था...
 
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ऎसा तो कभी नहीं हुआ था...
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(दो)
 
(दो)
 
  
 
चकित हुए दोनों वयस्क बुजुर्ग
 
चकित हुए दोनों वयस्क बुजुर्ग
 
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ऐसा नवजातक
ऎसा नवजातक
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न तो देखा था, न सुना ही था आज तक !
 
न तो देखा था, न सुना ही था आज तक !
 
 
पैदा हुआ है दस रोज़ पहले अपनी बिरादरी में
 
पैदा हुआ है दस रोज़ पहले अपनी बिरादरी में
 
 
क्या करेगा भला आगे चलकर ?
 
क्या करेगा भला आगे चलकर ?
 
 
रामजी के आसरे जी गया अगर
 
रामजी के आसरे जी गया अगर
 
 
कौन सी माटी गोड़ेगा ?
 
कौन सी माटी गोड़ेगा ?
 
 
कौन सा ढेला फोड़ेगा ?
 
कौन सा ढेला फोड़ेगा ?
 
 
मग्गह का यह बदनाम इलाका
 
मग्गह का यह बदनाम इलाका
 
 
जाने कैसा सलूक करेगा इस बालक से
 
जाने कैसा सलूक करेगा इस बालक से
 
 
पैदा हुआ बेचारा--
 
पैदा हुआ बेचारा--
 
 
भूमिहीन बंधुआ मज़दूरों के घर में
 
भूमिहीन बंधुआ मज़दूरों के घर में
 
 
जीवन गुजारेगा हैवान की तरह
 
जीवन गुजारेगा हैवान की तरह
 
+
भटकेगा जहाँ-तहाँ बनमानुस-जैसा
भटकेगा जहां-तहां बनमानुस-जैसा
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अधपेटा रहेगा अधनंगा डोलेगा
 
अधपेटा रहेगा अधनंगा डोलेगा
 
 
तोतला होगा कि साफ़-साफ़ बोलेगा
 
तोतला होगा कि साफ़-साफ़ बोलेगा
 
 
जाने क्या करेगा
 
जाने क्या करेगा
 
 
बहादुर होगा कि बेमौत मरेगा...
 
बहादुर होगा कि बेमौत मरेगा...
 
 
फ़िक्र की तलैया में खाने लगे गोते
 
फ़िक्र की तलैया में खाने लगे गोते
 
 
वयस्क बुजुर्ग दोनों, एक ही बिरादरी के हरिजन
 
वयस्क बुजुर्ग दोनों, एक ही बिरादरी के हरिजन
 
 
सोचने लगे बार-बार...
 
सोचने लगे बार-बार...
 
 
कैसे तो अनोखे हैं अभागे के हाथ-पैर
 
कैसे तो अनोखे हैं अभागे के हाथ-पैर
 
 
राम जी ही करेंगे इसकी खैर
 
राम जी ही करेंगे इसकी खैर
 
 
हम कैसे जानेंगे, हम ठहरे हैवान
 
हम कैसे जानेंगे, हम ठहरे हैवान
 
 
देखो तो कैसा मुलुर-मुलुर देख रहा शैतान !
 
देखो तो कैसा मुलुर-मुलुर देख रहा शैतान !
 
 
सोचते रहे दोनों बार-बार...
 
सोचते रहे दोनों बार-बार...
 
  
 
हाल ही में घटित हुआ था वो विराट दुष्कांड...
 
हाल ही में घटित हुआ था वो विराट दुष्कांड...
 
 
झोंक दिए गए थे तेरह निरपराध हरिजन
 
झोंक दिए गए थे तेरह निरपराध हरिजन
 
 
सुसज्जित चिता में...
 
सुसज्जित चिता में...
 
  
 
यह पैशाचिक नरमेध
 
यह पैशाचिक नरमेध
 
 
पैदा कर गया है दहशत जन-जन के मन में
 
पैदा कर गया है दहशत जन-जन के मन में
 
 
इन बूढ़ों की तो नींद ही उड़ गई है तब से !
 
इन बूढ़ों की तो नींद ही उड़ गई है तब से !
 
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बाक़ी नहीं बचे हैं पलकों के निशान
बाकी नहीं बचे हैं पलकों के निशान
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दिखते हैं दृगों के कोर ही कोर
 
दिखते हैं दृगों के कोर ही कोर
 
 
देती है जब-तब पहरा पपोटों पर
 
देती है जब-तब पहरा पपोटों पर
 
 
सील-मुहर सूखी कीचड़ की
 
सील-मुहर सूखी कीचड़ की
 
  
 
उनमें से एक बोला दूसरे से
 
उनमें से एक बोला दूसरे से
 
 
बच्चे की हथेलियों के निशान
 
बच्चे की हथेलियों के निशान
 
 
दिखलायेंगे गुरुजी से
 
दिखलायेंगे गुरुजी से
 
 
वो ज़रूर कुछ न कु़छ बतलायेंगे
 
वो ज़रूर कुछ न कु़छ बतलायेंगे
 
 
इसकी किस्मत के बारे में
 
इसकी किस्मत के बारे में
 
  
 
देखो तो ससुरे के कान हैं कैसे लम्बे
 
देखो तो ससुरे के कान हैं कैसे लम्बे
 
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आँखें हैं छोटी पर कितनी तेज़ हैं
आंखें हैं छोटी पर कितनी तेज़ हैं
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कैसी तेज़ रोशनी फूट रही है इन से !
 
कैसी तेज़ रोशनी फूट रही है इन से !
 
 
सिर हिलाकर और स्वर खींच कर
 
सिर हिलाकर और स्वर खींच कर
 
 
बुद्धू ने कहा--
 
बुद्धू ने कहा--
 
 
हां जी खदेरन, गुरु जी ही देखेंगे इसको
 
हां जी खदेरन, गुरु जी ही देखेंगे इसको
 
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बताएँगे वही इस कलुए की किस्मत के बारे में
बताएंगे वही इस कलुए की किस्मत के बारे में
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चलो, चलें, बुला लावें गुरु महाराज को...
 
चलो, चलें, बुला लावें गुरु महाराज को...
 
  
 
पास खड़ी थी दस साला छोकरी
 
पास खड़ी थी दस साला छोकरी
 
 
दद्दू के हाथों से ले लिया शिशु को
 
दद्दू के हाथों से ले लिया शिशु को
 
 
संभल कर चली गई झोंपड़ी के अन्दर
 
संभल कर चली गई झोंपड़ी के अन्दर
 
  
 
अगले नहीं, उससे अगले रोज़
 
अगले नहीं, उससे अगले रोज़
 
 
पधारे गुरु महाराज
 
पधारे गुरु महाराज
 
 
रैदासी कुटिया के अधेड़ संत गरीबदास
 
रैदासी कुटिया के अधेड़ संत गरीबदास
 
 
बकरी वाली गंगा-जमनी दाढ़ी थी
 
बकरी वाली गंगा-जमनी दाढ़ी थी
 
 
लटक रहा था गले से
 
लटक रहा था गले से
 
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अँगूठानुमा ज़रा-सा टुकड़ा तुलसी काठ का
अंगूठानुमा ज़रा-सा टुकड़ा तुलसी काठ का
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कद था नाटा, सूरत थी साँवली
 
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कद था नाटा, सूरत थी सांवली
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कपार पर, बाईं तरफ घोड़े के खुर का
 
कपार पर, बाईं तरफ घोड़े के खुर का
 
 
निशान था
 
निशान था
 
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चेहरा था गोल-मटोल, आँखें थीं घुच्ची
चेहरा था गोल-मटोल, आंखें थीं घुच्ची
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बदन कठमस्त था...
 
बदन कठमस्त था...
 
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ऐसे आप अधेड़ संत गरीबदास पधारे
ऎसे आप अधेड़ संत गरीबदास पधारे
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चमर टोली में...
 
चमर टोली में...
 
  
 
'अरे भगाओ इस बालक को
 
'अरे भगाओ इस बालक को
 
 
होगा यह भारी उत्पाती
 
होगा यह भारी उत्पाती
 
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जुलुम मिटाएँगे धरती से
जुलुम मिटाएंगे धरती से
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इसके साथी और संघाती   
 
इसके साथी और संघाती   
 
  
 
'यह उन सबका लीडर होगा
 
'यह उन सबका लीडर होगा
 
 
नाम छ्पेगा अख़बारों में
 
नाम छ्पेगा अख़बारों में
 
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बड़े-बड़े मिलने आएँगे
बड़े-बड़े मिलने आएंगे
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लद-लद कर मोटर-कारों में
 
लद-लद कर मोटर-कारों में
 
  
 
'खान खोदने वाले सौ-सौ
 
'खान खोदने वाले सौ-सौ
 
 
मज़दूरों के बीच पलेगा
 
मज़दूरों के बीच पलेगा
 
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युग की आँचों में फ़ौलादी
युग की आंचों में फ़ौलादी
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साँचे-सा यह वहीं ढलेगा
 
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सांचे-सा यह वहीं ढलेगा
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'इसे भेज दो झरिया-फरिया
 
'इसे भेज दो झरिया-फरिया
 
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माँ भी शिशु के साथ रहेगी
मां भी शिशु के साथ रहेगी
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बतला देना, अपना असली
 
बतला देना, अपना असली
 
 
नाम-पता कुछ नहीं कहेगी
 
नाम-पता कुछ नहीं कहेगी
 
  
 
'आज भगाओ, अभी भगाओ
 
'आज भगाओ, अभी भगाओ
 
 
तुम लोगों को मोह न घेरे
 
तुम लोगों को मोह न घेरे
 
 
होशियार, इस शिशु के पीछे
 
होशियार, इस शिशु के पीछे
 
 
लगा रहे हैं गीदड़ फेरे
 
लगा रहे हैं गीदड़ फेरे
 
  
 
'बड़े-बड़े इन भूमिधरों को
 
'बड़े-बड़े इन भूमिधरों को
 
 
यदि इसका कुछ पता चल गया
 
यदि इसका कुछ पता चल गया
 
 
दीन-हीन छोटे लोगों को
 
दीन-हीन छोटे लोगों को
 
 
समझो फिर दुर्भाग्य छ्ल गया
 
समझो फिर दुर्भाग्य छ्ल गया
 
  
 
'जनबल-धनबल सभी जुटेगा
 
'जनबल-धनबल सभी जुटेगा
 
 
हथियारों की कमी न होगी
 
हथियारों की कमी न होगी
 
 
लेकिन अपने लेखे इसको
 
लेकिन अपने लेखे इसको
 
 
हर्ष न होगा, गमी न होगी
 
हर्ष न होगा, गमी न होगी
 
  
 
' सब के दुख में दुखी रहेगा
 
' सब के दुख में दुखी रहेगा
 
 
सबके सुख में सुख मानेगा
 
सबके सुख में सुख मानेगा
 
 
समझ-बूझ कर ही समता का  
 
समझ-बूझ कर ही समता का  
 
 
असली मुद्दा पहचानेगा
 
असली मुद्दा पहचानेगा
 
  
 
' अरे देखना इसके डर से
 
' अरे देखना इसके डर से
 
 
थर-थर कांपेंगे हत्यारे
 
थर-थर कांपेंगे हत्यारे
 
 
चोर-उचक्के- गुंडे-डाकू
 
चोर-उचक्के- गुंडे-डाकू
 
 
सभी फिरेंगे मारे-मारे
 
सभी फिरेंगे मारे-मारे
 
  
 
'इसकी अपनी पार्टी होगी
 
'इसकी अपनी पार्टी होगी
 
 
इसका अपना ही दल होगा
 
इसका अपना ही दल होगा
 
 
अजी देखना, इसके लेखे
 
अजी देखना, इसके लेखे
 
 
जंगल में ही मंगल होगा
 
जंगल में ही मंगल होगा
 
  
 
'श्याम सलोना यह अछूत शिशु
 
'श्याम सलोना यह अछूत शिशु
 
 
हम सब का उद्धार करेगा
 
हम सब का उद्धार करेगा
 
 
आज यह सम्पूर्ण क्रान्ति का
 
आज यह सम्पूर्ण क्रान्ति का
 
 
बेड़ा सचमुच पार करेगा
 
बेड़ा सचमुच पार करेगा
 
  
 
'हिंसा और अहिंसा दोनों
 
'हिंसा और अहिंसा दोनों
 
 
बहनें इसको प्यार करेंगी
 
बहनें इसको प्यार करेंगी
 
 
इसके आगे आपस में वे
 
इसके आगे आपस में वे
 
 
कभी नहीं तकरार करेंगी...'
 
कभी नहीं तकरार करेंगी...'
 
  
 
इतना कहकर उस बाबा ने
 
इतना कहकर उस बाबा ने
 
 
दस-दस के छह नोट निकाले
 
दस-दस के छह नोट निकाले
 
 
बस, फिर उसके होंठों पर थे
 
बस, फिर उसके होंठों पर थे
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अपनी उँगलियों के ताले
  
अपनी उंगलियों के ताले
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फिर तो उस बाबा की आँखें
 
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फिर तो उस बाबा की आंखें
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बार-बार गीली हो आईं
 
बार-बार गीली हो आईं
 
 
साफ़ सिलेटी हृदय-गगन में
 
साफ़ सिलेटी हृदय-गगन में
 
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जाने कैसी सुधियाँ छाईं
जाने कैसी सुधियां छाईं
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नव शिशु का सिर सूंघ रहा था
 
नव शिशु का सिर सूंघ रहा था
 
 
विह्वल होकर बार-बार वो
 
विह्वल होकर बार-बार वो
 
 
सांस खींचता था रह-रह कर  
 
सांस खींचता था रह-रह कर  
 
 
गुमसुम-सा था लगातार वो
 
गुमसुम-सा था लगातार वो
  
 
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पाँच महीने होने आए
पांच महीने होने आए
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हत्याकांड मचा था कैसा !
 
हत्याकांड मचा था कैसा !
 
 
प्रबल वर्ग ने निम्न वर्ग पर
 
प्रबल वर्ग ने निम्न वर्ग पर
 
 
पहले नहीं किया था ऐसा !
 
पहले नहीं किया था ऐसा !
 
  
 
देख रहा था नवजातक के
 
देख रहा था नवजातक के
 
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दाएँ कर की नरम हथेली
दाएं कर की नरम हथेली
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सोच रहा था-- इस गरीब ने
 
सोच रहा था-- इस गरीब ने
 
 
सूक्ष्म रूप में विपदा झेली
 
सूक्ष्म रूप में विपदा झेली
 
  
 
आड़ी-तिरछी रेखाओं में
 
आड़ी-तिरछी रेखाओं में
 
 
हथियारों के ही निशान हैं
 
हथियारों के ही निशान हैं
 
 
खुखरी है, बम है, असि भी है
 
खुखरी है, बम है, असि भी है
 
 
गंडासा-भाला प्रधान हैं
 
गंडासा-भाला प्रधान हैं
  
 
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दिल ने कहा-- दलित माँओं के
दिल ने कहा-- दलित माओं के
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सब बच्चे अब बागी होंगे
 
सब बच्चे अब बागी होंगे
 
 
अग्निपुत्र होंगे वे अन्तिम
 
अग्निपुत्र होंगे वे अन्तिम
 
 
विप्लव में सहभागी होंगे
 
विप्लव में सहभागी होंगे
 
  
 
दिल ने कहा--अरे यह बच्चा
 
दिल ने कहा--अरे यह बच्चा
 
 
सचमुच अवतारी वराह है
 
सचमुच अवतारी वराह है
 
 
इसकी भावी लीलाओं की
 
इसकी भावी लीलाओं की
 
 
सारी धरती चरागाह है
 
सारी धरती चरागाह है
 
  
 
दिल ने कहा-- अरे हम तो बस
 
दिल ने कहा-- अरे हम तो बस
 
 
पिटते आए, रोते आए !
 
पिटते आए, रोते आए !
 
 
बकरी के खुर जितना पानी
 
बकरी के खुर जितना पानी
 
 
उसमें सौ-सौ गोते खाए !
 
उसमें सौ-सौ गोते खाए !
 
  
 
दिल ने कहा-- अरे यह बालक
 
दिल ने कहा-- अरे यह बालक
 
 
निम्न वर्ग का नायक होगा
 
निम्न वर्ग का नायक होगा
 
 
नई ऋचाओं का निर्माता
 
नई ऋचाओं का निर्माता
 
 
नए वेद का गायक होगा
 
नए वेद का गायक होगा
 
  
 
होंगे इसके सौ सहयोद्धा
 
होंगे इसके सौ सहयोद्धा
 
 
लाख-लाख जन अनुचर होंगे
 
लाख-लाख जन अनुचर होंगे
 
 
होगा कर्म-वचन का पक्का
 
होगा कर्म-वचन का पक्का
 
 
फ़ोटो इसके घर-घर होंगे
 
फ़ोटो इसके घर-घर होंगे
 
  
 
दिल ने कहा-- अरे इस शिशु को
 
दिल ने कहा-- अरे इस शिशु को
 
 
दुनिया भर में कीर्ति मिलेगी
 
दुनिया भर में कीर्ति मिलेगी
 
 
इस कलुए की तदबीरों से
 
इस कलुए की तदबीरों से
 
 
शोषण की बुनियाद हिलेगी
 
शोषण की बुनियाद हिलेगी
 
  
 
दिल ने कहा-- अभी जो भी शिशु
 
दिल ने कहा-- अभी जो भी शिशु
 
 
इस बस्ती में पैदा होंगे
 
इस बस्ती में पैदा होंगे
 
 
सब के सब सूरमा बनेंगे
 
सब के सब सूरमा बनेंगे
 
 
सब के सब ही शैदा होंगे
 
सब के सब ही शैदा होंगे
 
  
 
दस दिन वाले श्याम सलोने
 
दस दिन वाले श्याम सलोने
 
 
शिशु मुख की यह छ्टा निराली
 
शिशु मुख की यह छ्टा निराली
 
 
दिल ने कहा--भला क्या देखें
 
दिल ने कहा--भला क्या देखें
 
 
नज़रें गीली पलकों वाली
 
नज़रें गीली पलकों वाली
 
 
थाम लिए विह्वल बाबा ने
 
थाम लिए विह्वल बाबा ने
 
 
अभिनव लघु मानव के मृदु पग
 
अभिनव लघु मानव के मृदु पग
 
 
पाकर इनके परस जादुई
 
पाकर इनके परस जादुई
 
 
भूमि अकंटक होगी लगभग
 
भूमि अकंटक होगी लगभग
 
 
बिजली की फुर्ती से बाबा
 
बिजली की फुर्ती से बाबा
 
 
उठा वहां से, बाहर आया
 
उठा वहां से, बाहर आया
 
 
वह था मानो पीछे-पीछे
 
वह था मानो पीछे-पीछे
 
 
आगे थी भास्वर शिशु-छाया
 
आगे थी भास्वर शिशु-छाया
 
  
 
लौटा नहीं कुटी में बाबा
 
लौटा नहीं कुटी में बाबा
 
 
नदी किनारे निकल गया था
 
नदी किनारे निकल गया था
 
 
लेकिन इन दोनों को तो अब
 
लेकिन इन दोनों को तो अब
 
 
लगता सब कुछ नया-नया था
 
लगता सब कुछ नया-नया था
 
  
 
(तीन)
 
(तीन)
 
  
 
'सुनते हो' बोला खदेरन
 
'सुनते हो' बोला खदेरन
 
 
बुद्धू भाई देर नहीं करनी है इसमें
 
बुद्धू भाई देर नहीं करनी है इसमें
 
 
चलो, कहीं बच्चे को रख आवें...
 
चलो, कहीं बच्चे को रख आवें...
 
 
बतला गए हैं अभी-अभी
 
बतला गए हैं अभी-अभी
 
 
गुरु महाराज,
 
गुरु महाराज,
 
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बच्चे को माँ-सहित हटा देना है कहीं
बच्चे को मां-सहित हटा देना है कहीं
+
 
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फौरन बुद्धू भाई !'...
 
फौरन बुद्धू भाई !'...
 
 
बुद्धू ने अपना माथा हिलाया
 
बुद्धू ने अपना माथा हिलाया
 
 
खदेरन की बात पर
 
खदेरन की बात पर
 
 
एक नहीं, तीन बार !
 
एक नहीं, तीन बार !
 
 
बोला मगर एक शब्द नहीं
 
बोला मगर एक शब्द नहीं
 
 
व्याप रही थी गम्भीरता चेहरे पर
 
व्याप रही थी गम्भीरता चेहरे पर
 
 
था भी तो वही उम्र में बड़ा
 
था भी तो वही उम्र में बड़ा
 
 
(सत्तर से कम का तो भला क्या रहा होगा !)
 
(सत्तर से कम का तो भला क्या रहा होगा !)
 
 
'तो चलो !
 
'तो चलो !
 
 
उठो फौरन उठो !
 
उठो फौरन उठो !
 
 
शाम की गाड़ी से निकल चलेंगे
 
शाम की गाड़ी से निकल चलेंगे
 
 
मालूम नहीं होगा किसी को...
 
मालूम नहीं होगा किसी को...
 
+
लौटने में तीन-चार रोज़ तो लग ही जाएँगे...
लौटने में तीन-चार रोज़ तो लग ही जाएंगे...
+
 
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'बुद्धू भाई तुम तो अपने घर जाओ
 
'बुद्धू भाई तुम तो अपने घर जाओ
 
 
खाओ,पियो, आराम कर लो
 
खाओ,पियो, आराम कर लो
 
 
रात में गाड़ी के अन्दर जागना ही तो पड़ेगा...
 
रात में गाड़ी के अन्दर जागना ही तो पड़ेगा...
 
 
रास्ते के लिए थोड़ा चना-चबेना जुटा लेना
 
रास्ते के लिए थोड़ा चना-चबेना जुटा लेना
 
 
मैं इत्ते में करता हूं तैयार
 
मैं इत्ते में करता हूं तैयार
 
 
समझा-बुझा कर
 
समझा-बुझा कर
 
 
सुखिया और उसकी सास को...'
 
सुखिया और उसकी सास को...'
 
  
 
बुद्धू ने पूछा, धरती टेक कर
 
बुद्धू ने पूछा, धरती टेक कर
 
 
उठते-उठते--
 
उठते-उठते--
 
 
'झरिया,गिरिडिह, बोकारो
 
'झरिया,गिरिडिह, बोकारो
 
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कहाँ रखोगे छोकरे को ?
कहां रखोगे छोकरे को ?
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वहीं न ? जहाँ अपनी बिरादरी के
 
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वहीं न ? जहां अपनी बिरादरी के
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कुली-मज़ूर होंगे सौ-पचास ?
 
कुली-मज़ूर होंगे सौ-पचास ?
 
 
चार-छै महीने बाद ही
 
चार-छै महीने बाद ही
 
 
कोई काम पकड़ लेगी सुखिया भी...'
 
कोई काम पकड़ लेगी सुखिया भी...'
 
 
और, फिर अपने आप से
 
और, फिर अपने आप से
 
 
धीमी आवाज़ में कहने लगा बुद्धू
 
धीमी आवाज़ में कहने लगा बुद्धू
 
 
छोकरे की बदनसीबी तो देखो
 
छोकरे की बदनसीबी तो देखो
 
+
माँ के पेट में था तभी इसका बाप भी
मां के पेट में था तभी इसका बाप भी
+
 
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झोंक दिया गया उसी आग में...
 
झोंक दिया गया उसी आग में...
 
 
बेचारी सुखिया जैसे-तैसे पाल ही लेगी इसको
 
बेचारी सुखिया जैसे-तैसे पाल ही लेगी इसको
 
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मैं तो इसे साल-साल देख आया करूँगा
मैं तो इसे साल-साल देख आया करूंगा
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जब तक है चलने-फिरने की ताकत चोले में...
 
जब तक है चलने-फिरने की ताकत चोले में...
 
 
तो क्या आगे भी इस कलु॒ए के लिए
 
तो क्या आगे भी इस कलु॒ए के लिए
 
 
भेजते रहेंगे खर्ची गुरु महाराज ?...
 
भेजते रहेंगे खर्ची गुरु महाराज ?...
 
  
 
बढ़ आया बुद्धू अपने छ्प्पर की तरफ़
 
बढ़ आया बुद्धू अपने छ्प्पर की तरफ़
 
 
नाचते रहे लेकिन माथे के अन्दर
 
नाचते रहे लेकिन माथे के अन्दर
 
 
गुरु महाराज के मुंह से निकले हुए
 
गुरु महाराज के मुंह से निकले हुए
 
 
हथियारों के नाम और आकार-प्रकार
 
हथियारों के नाम और आकार-प्रकार
 
 
खुखरी, भाला, गंडासा, बम तलवार...
 
खुखरी, भाला, गंडासा, बम तलवार...
 
 
तलवार, बम, गंडासा, भाला, खुखरी...
 
तलवार, बम, गंडासा, भाला, खुखरी...
  
  
(१९७७ में रचित,'खिचड़ी विप्लव देखा हमने' नामक संग्रह से )
+
(१९७७)
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</poem>

12:20, 18 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

(एक)

ऐसा तो कभी नहीं हुआ था !
महसूस करने लगीं वे
एक अनोखी बेचैनी
एक अपूर्व आकुलता
उनकी गर्भकुक्षियों के अन्दर
बार-बार उठने लगी टीसें
लगाने लगे दौड़ उनके भ्रूण
अंदर ही अंदर
ऐसा तो कभी नहीं हुआ था

ऐसा तो कभी नहीं हुआ था कि
हरिजन-माताएँ अपने भ्रूणों के जनकों को
खो चुकी हों एक पैशाचिक दुष्कांड में
ऐसा तो कभी नहीं हुआ था...

ऐसा तो कभी नहीं हुआ था कि
एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं--
तेरह के तेरह अभागे--
अकिंचन मनुपुत्र
ज़िन्दा झोंक दिये गए हों
प्रचण्ड अग्नि की विकराल लपटों में
साधन सम्पन्न ऊँची जातियों वाले
सौ-सौ मनुपुत्रों द्वारा !
ऐसा तो कभी नहीं हुआ था...
 
ऐसा तो कभी नहीं हुआ था कि
महज दस मील दूर पड़ता हो थाना
और दारोगा जी तक बार-बार
ख़बरें पहुँचा दी गई हों संभावित दुर्घटनाओं की

और, निरन्तर कई दिनों तक
चलती रही हों तैयारियाँ सरेआम
(किरासिन के कनस्तर, मोटे-मोटे लक्क्ड़,
उपलों के ढेर, सूखी घास-फूस के पूले
जुटाए गए हों उल्लासपूर्वक)
और एक विराट चिताकुंड के लिए
खोदा गया हो गड्ढा हँस-हँस कर
और ऊँची जातियों वाली वो समूची आबादी
आ गई हो होली वाले 'सुपर मौज' मूड में
और, इस तरह ज़िन्दा झोंक दिए गए हों

तेरह के तेरह अभागे मनुपुत्र
सौ-सौ भाग्यवान मनुपुत्रों द्वारा
ऐसा तो कभी नहीं हुआ था...
ऐसा तो कभी नहीं हुआ था...

(दो)

चकित हुए दोनों वयस्क बुजुर्ग
ऐसा नवजातक
न तो देखा था, न सुना ही था आज तक !
पैदा हुआ है दस रोज़ पहले अपनी बिरादरी में
क्या करेगा भला आगे चलकर ?
रामजी के आसरे जी गया अगर
कौन सी माटी गोड़ेगा ?
कौन सा ढेला फोड़ेगा ?
मग्गह का यह बदनाम इलाका
जाने कैसा सलूक करेगा इस बालक से
पैदा हुआ बेचारा--
भूमिहीन बंधुआ मज़दूरों के घर में
जीवन गुजारेगा हैवान की तरह
भटकेगा जहाँ-तहाँ बनमानुस-जैसा
अधपेटा रहेगा अधनंगा डोलेगा
तोतला होगा कि साफ़-साफ़ बोलेगा
जाने क्या करेगा
बहादुर होगा कि बेमौत मरेगा...
फ़िक्र की तलैया में खाने लगे गोते
वयस्क बुजुर्ग दोनों, एक ही बिरादरी के हरिजन
सोचने लगे बार-बार...
कैसे तो अनोखे हैं अभागे के हाथ-पैर
राम जी ही करेंगे इसकी खैर
हम कैसे जानेंगे, हम ठहरे हैवान
देखो तो कैसा मुलुर-मुलुर देख रहा शैतान !
सोचते रहे दोनों बार-बार...

हाल ही में घटित हुआ था वो विराट दुष्कांड...
झोंक दिए गए थे तेरह निरपराध हरिजन
सुसज्जित चिता में...

यह पैशाचिक नरमेध
पैदा कर गया है दहशत जन-जन के मन में
इन बूढ़ों की तो नींद ही उड़ गई है तब से !
बाक़ी नहीं बचे हैं पलकों के निशान
दिखते हैं दृगों के कोर ही कोर
देती है जब-तब पहरा पपोटों पर
सील-मुहर सूखी कीचड़ की

उनमें से एक बोला दूसरे से
बच्चे की हथेलियों के निशान
दिखलायेंगे गुरुजी से
वो ज़रूर कुछ न कु़छ बतलायेंगे
इसकी किस्मत के बारे में

देखो तो ससुरे के कान हैं कैसे लम्बे
आँखें हैं छोटी पर कितनी तेज़ हैं
कैसी तेज़ रोशनी फूट रही है इन से !
सिर हिलाकर और स्वर खींच कर
बुद्धू ने कहा--
हां जी खदेरन, गुरु जी ही देखेंगे इसको
बताएँगे वही इस कलुए की किस्मत के बारे में
चलो, चलें, बुला लावें गुरु महाराज को...

पास खड़ी थी दस साला छोकरी
दद्दू के हाथों से ले लिया शिशु को
संभल कर चली गई झोंपड़ी के अन्दर

अगले नहीं, उससे अगले रोज़
पधारे गुरु महाराज
रैदासी कुटिया के अधेड़ संत गरीबदास
बकरी वाली गंगा-जमनी दाढ़ी थी
लटक रहा था गले से
अँगूठानुमा ज़रा-सा टुकड़ा तुलसी काठ का
कद था नाटा, सूरत थी साँवली
कपार पर, बाईं तरफ घोड़े के खुर का
निशान था
चेहरा था गोल-मटोल, आँखें थीं घुच्ची
बदन कठमस्त था...
ऐसे आप अधेड़ संत गरीबदास पधारे
चमर टोली में...

'अरे भगाओ इस बालक को
होगा यह भारी उत्पाती
जुलुम मिटाएँगे धरती से
इसके साथी और संघाती

'यह उन सबका लीडर होगा
नाम छ्पेगा अख़बारों में
बड़े-बड़े मिलने आएँगे
लद-लद कर मोटर-कारों में

'खान खोदने वाले सौ-सौ
मज़दूरों के बीच पलेगा
युग की आँचों में फ़ौलादी
साँचे-सा यह वहीं ढलेगा

'इसे भेज दो झरिया-फरिया
माँ भी शिशु के साथ रहेगी
बतला देना, अपना असली
नाम-पता कुछ नहीं कहेगी

'आज भगाओ, अभी भगाओ
तुम लोगों को मोह न घेरे
होशियार, इस शिशु के पीछे
लगा रहे हैं गीदड़ फेरे

'बड़े-बड़े इन भूमिधरों को
यदि इसका कुछ पता चल गया
दीन-हीन छोटे लोगों को
समझो फिर दुर्भाग्य छ्ल गया

'जनबल-धनबल सभी जुटेगा
हथियारों की कमी न होगी
लेकिन अपने लेखे इसको
हर्ष न होगा, गमी न होगी

' सब के दुख में दुखी रहेगा
सबके सुख में सुख मानेगा
समझ-बूझ कर ही समता का
असली मुद्दा पहचानेगा

' अरे देखना इसके डर से
थर-थर कांपेंगे हत्यारे
चोर-उचक्के- गुंडे-डाकू
सभी फिरेंगे मारे-मारे

'इसकी अपनी पार्टी होगी
इसका अपना ही दल होगा
अजी देखना, इसके लेखे
जंगल में ही मंगल होगा

'श्याम सलोना यह अछूत शिशु
हम सब का उद्धार करेगा
आज यह सम्पूर्ण क्रान्ति का
बेड़ा सचमुच पार करेगा

'हिंसा और अहिंसा दोनों
बहनें इसको प्यार करेंगी
इसके आगे आपस में वे
कभी नहीं तकरार करेंगी...'

इतना कहकर उस बाबा ने
दस-दस के छह नोट निकाले
बस, फिर उसके होंठों पर थे
अपनी उँगलियों के ताले

फिर तो उस बाबा की आँखें
बार-बार गीली हो आईं
साफ़ सिलेटी हृदय-गगन में
जाने कैसी सुधियाँ छाईं

नव शिशु का सिर सूंघ रहा था
विह्वल होकर बार-बार वो
सांस खींचता था रह-रह कर
गुमसुम-सा था लगातार वो

पाँच महीने होने आए
हत्याकांड मचा था कैसा !
प्रबल वर्ग ने निम्न वर्ग पर
पहले नहीं किया था ऐसा !

देख रहा था नवजातक के
दाएँ कर की नरम हथेली
सोच रहा था-- इस गरीब ने
सूक्ष्म रूप में विपदा झेली

आड़ी-तिरछी रेखाओं में
हथियारों के ही निशान हैं
खुखरी है, बम है, असि भी है
गंडासा-भाला प्रधान हैं

दिल ने कहा-- दलित माँओं के
सब बच्चे अब बागी होंगे
अग्निपुत्र होंगे वे अन्तिम
विप्लव में सहभागी होंगे

दिल ने कहा--अरे यह बच्चा
सचमुच अवतारी वराह है
इसकी भावी लीलाओं की
सारी धरती चरागाह है

दिल ने कहा-- अरे हम तो बस
पिटते आए, रोते आए !
बकरी के खुर जितना पानी
उसमें सौ-सौ गोते खाए !

दिल ने कहा-- अरे यह बालक
निम्न वर्ग का नायक होगा
नई ऋचाओं का निर्माता
नए वेद का गायक होगा

होंगे इसके सौ सहयोद्धा
लाख-लाख जन अनुचर होंगे
होगा कर्म-वचन का पक्का
फ़ोटो इसके घर-घर होंगे

दिल ने कहा-- अरे इस शिशु को
दुनिया भर में कीर्ति मिलेगी
इस कलुए की तदबीरों से
शोषण की बुनियाद हिलेगी

दिल ने कहा-- अभी जो भी शिशु
इस बस्ती में पैदा होंगे
सब के सब सूरमा बनेंगे
सब के सब ही शैदा होंगे

दस दिन वाले श्याम सलोने
शिशु मुख की यह छ्टा निराली
दिल ने कहा--भला क्या देखें
नज़रें गीली पलकों वाली
थाम लिए विह्वल बाबा ने
अभिनव लघु मानव के मृदु पग
पाकर इनके परस जादुई
भूमि अकंटक होगी लगभग
बिजली की फुर्ती से बाबा
उठा वहां से, बाहर आया
वह था मानो पीछे-पीछे
आगे थी भास्वर शिशु-छाया

लौटा नहीं कुटी में बाबा
नदी किनारे निकल गया था
लेकिन इन दोनों को तो अब
लगता सब कुछ नया-नया था

(तीन)

'सुनते हो' बोला खदेरन
बुद्धू भाई देर नहीं करनी है इसमें
चलो, कहीं बच्चे को रख आवें...
बतला गए हैं अभी-अभी
गुरु महाराज,
बच्चे को माँ-सहित हटा देना है कहीं
फौरन बुद्धू भाई !'...
बुद्धू ने अपना माथा हिलाया
खदेरन की बात पर
एक नहीं, तीन बार !
बोला मगर एक शब्द नहीं
व्याप रही थी गम्भीरता चेहरे पर
था भी तो वही उम्र में बड़ा
(सत्तर से कम का तो भला क्या रहा होगा !)
'तो चलो !
उठो फौरन उठो !
शाम की गाड़ी से निकल चलेंगे
मालूम नहीं होगा किसी को...
लौटने में तीन-चार रोज़ तो लग ही जाएँगे...
'बुद्धू भाई तुम तो अपने घर जाओ
खाओ,पियो, आराम कर लो
रात में गाड़ी के अन्दर जागना ही तो पड़ेगा...
रास्ते के लिए थोड़ा चना-चबेना जुटा लेना
मैं इत्ते में करता हूं तैयार
समझा-बुझा कर
सुखिया और उसकी सास को...'

बुद्धू ने पूछा, धरती टेक कर
उठते-उठते--
'झरिया,गिरिडिह, बोकारो
कहाँ रखोगे छोकरे को ?
वहीं न ? जहाँ अपनी बिरादरी के
कुली-मज़ूर होंगे सौ-पचास ?
चार-छै महीने बाद ही
कोई काम पकड़ लेगी सुखिया भी...'
और, फिर अपने आप से
धीमी आवाज़ में कहने लगा बुद्धू
छोकरे की बदनसीबी तो देखो
माँ के पेट में था तभी इसका बाप भी
झोंक दिया गया उसी आग में...
बेचारी सुखिया जैसे-तैसे पाल ही लेगी इसको
मैं तो इसे साल-साल देख आया करूँगा
जब तक है चलने-फिरने की ताकत चोले में...
तो क्या आगे भी इस कलु॒ए के लिए
भेजते रहेंगे खर्ची गुरु महाराज ?...

बढ़ आया बुद्धू अपने छ्प्पर की तरफ़
नाचते रहे लेकिन माथे के अन्दर
गुरु महाराज के मुंह से निकले हुए
हथियारों के नाम और आकार-प्रकार
खुखरी, भाला, गंडासा, बम तलवार...
तलवार, बम, गंडासा, भाला, खुखरी...


(१९७७)