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टूटें सकल बन्ध
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कलि के, दिशा-ज्ञान-गत हो बहे गन्ध।
  
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           रुद्ध जो धार रे
 
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           शिखर - निर्झर झरे
टूटें सकल बन्ध<br>
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           मधुर कलरव भरे
कलि के, दिशा-ज्ञान-गत हो बहे गन्ध।<br><br>
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           शून्य शत-शत रन्ध्र।
 
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           शिखर - निर्झर झरे<br>
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           शून्य शत-शत रन्ध्र।<br><br>
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           रश्मि ऋजु खींच दे
           चित्र शत रंग के,<br>
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           चित्र शत रंग के,
           वर्ण - जीवन फले,<br>
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           जागे तिमिर अन्ध।
 
           जागे तिमिर अन्ध।
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23:01, 8 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

टूटें सकल बन्ध
कलि के, दिशा-ज्ञान-गत हो बहे गन्ध।

          रुद्ध जो धार रे
          शिखर - निर्झर झरे
          मधुर कलरव भरे
          शून्य शत-शत रन्ध्र।
          
          रश्मि ऋजु खींच दे
           चित्र शत रंग के,
          वर्ण - जीवन फले,
          जागे तिमिर अन्ध।