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हज़ारों घर, हज़ारों चेहरों-भरा सुनसान - | हज़ारों घर, हज़ारों चेहरों-भरा सुनसान - | ||
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बोलता है, बोलती है जिस तरह चट्टान | बोलता है, बोलती है जिस तरह चट्टान | ||
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सलाखों से छन रही है दोपहर की धूप | सलाखों से छन रही है दोपहर की धूप | ||
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धूप में रखा हुआ है एक काला सूप | धूप में रखा हुआ है एक काला सूप | ||
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तमतमाए हुए चेहरे, खुले खाली हाथ | तमतमाए हुए चेहरे, खुले खाली हाथ | ||
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देख लो वे जा रहे हैं उठे जर्जर माथ | देख लो वे जा रहे हैं उठे जर्जर माथ | ||
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शब्द सारे धूल हैं, व्याकरण सारे ढोंग | शब्द सारे धूल हैं, व्याकरण सारे ढोंग | ||
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किस क़दर खामोश हैं चलते हुए वे लोग | किस क़दर खामोश हैं चलते हुए वे लोग | ||
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पियाली टूटी पड़ी है, गिर पड़ी है चाय | पियाली टूटी पड़ी है, गिर पड़ी है चाय | ||
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साइकिल की छांह में सिमटी खड़ी है गाय | साइकिल की छांह में सिमटी खड़ी है गाय | ||
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पूछता है एक चेहरा दूसरे से मौन | पूछता है एक चेहरा दूसरे से मौन | ||
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बचा हो साबूत -- ऎसा कहां है वह-- कौन? | बचा हो साबूत -- ऎसा कहां है वह-- कौन? | ||
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सिर्फ़ कौआ एक मडराता हुआ - सा व्यर्थ | सिर्फ़ कौआ एक मडराता हुआ - सा व्यर्थ | ||
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समूचे माहौल को कुछ दे रहा है अर्थ | समूचे माहौल को कुछ दे रहा है अर्थ | ||
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14:01, 25 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
हज़ारों घर, हज़ारों चेहरों-भरा सुनसान -
बोलता है, बोलती है जिस तरह चट्टान
सलाखों से छन रही है दोपहर की धूप
धूप में रखा हुआ है एक काला सूप
तमतमाए हुए चेहरे, खुले खाली हाथ
देख लो वे जा रहे हैं उठे जर्जर माथ
शब्द सारे धूल हैं, व्याकरण सारे ढोंग
किस क़दर खामोश हैं चलते हुए वे लोग
पियाली टूटी पड़ी है, गिर पड़ी है चाय
साइकिल की छांह में सिमटी खड़ी है गाय
पूछता है एक चेहरा दूसरे से मौन
बचा हो साबूत -- ऎसा कहां है वह-- कौन?
सिर्फ़ कौआ एक मडराता हुआ - सा व्यर्थ
समूचे माहौल को कुछ दे रहा है अर्थ