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"जूते/ केदारनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर
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सभा उठ गई | सभा उठ गई | ||
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रह गए जूते | रह गए जूते | ||
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सूने हाल में दो चकित उदास | सूने हाल में दो चकित उदास | ||
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धूल भरे जूते | धूल भरे जूते | ||
− | + | मुँहबाए जूते जिनका वारिस | |
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कोई नहीं था | कोई नहीं था | ||
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चौकीदार आया | चौकीदार आया | ||
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उसने देखा जूतों को | उसने देखा जूतों को | ||
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फिर वह देर तक खड़ा रहा | फिर वह देर तक खड़ा रहा | ||
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सोचता रहा-- | सोचता रहा-- | ||
कितना अजीब है | कितना अजीब है | ||
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कि वक्ता चले गए | कि वक्ता चले गए | ||
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और सारी बहस के अंत में | और सारी बहस के अंत में | ||
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रह गए जूते | रह गए जूते | ||
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उस सूने हाल में | उस सूने हाल में | ||
− | + | जहाँ कहने को अब कुछ नहीं था | |
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कितना कुछ कितना कुछ | कितना कुछ कितना कुछ | ||
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कह गए जूते | कह गए जूते | ||
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14:03, 25 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
सभा उठ गई
रह गए जूते
सूने हाल में दो चकित उदास
धूल भरे जूते
मुँहबाए जूते जिनका वारिस
कोई नहीं था
चौकीदार आया
उसने देखा जूतों को
फिर वह देर तक खड़ा रहा
मुँहबाए जूतों के सामने
सोचता रहा--
कितना अजीब है
कि वक्ता चले गए
और सारी बहस के अंत में
रह गए जूते
उस सूने हाल में
जहाँ कहने को अब कुछ नहीं था
कितना कुछ कितना कुछ
कह गए जूते