Last modified on 9 मई 2011, at 18:14

"नियंत्रण / नरेश अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=नरेश अग्रवाल
 
|रचनाकार=नरेश अग्रवाल
|संग्रह=  
+
|संग्रह=चित्रकार / नरेश अग्रवाल
 
}}  
 
}}  
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}

18:14, 9 मई 2011 के समय का अवतरण

जिन रातों में हमने उत्सव मनाए
फिर उन्हीं रातों को देखकर हम डर गए
जीवन संचारित होता है जहाँ से
अपार प्रफुल्लता लाते हुए

जब असंचालित हो जाता है
कच्चे अनुभवों के छोर से
ये विपत्तियाँ हीं तो हैं ।

कमरे के भीतर गमलों में
ढेरों फूल कभी नहीं आएँगे
एक दिन मिट्टी ही खा जाएगी
उनकी सड़ी-गली डालियाँ ।

बहादुर योद्धा तलवार से नहीं
अपने पराक्रम से जीतते हैं
और बिना तलवार के भी
वे उतने ही पराक्रमी हैं ।

सारे नियंत्रण को ताक़त चाहिए
और वो मैं ढूँढ़ता हूँ अपने आप में
कहाँ है वो? कैसे उसे संचालित करूँ ?

कभी हार नहीं मानता किसी का भी जीवन
वह उसे बचाए रखने के लिए पूरे प्रयत्न करता है
और मैं अपनी ताक़त के सारे स्रोत ढूँढ़कर
फिर से बलिष्ठ हो जाता हूँ।