"मौत / फ़ेदेरिको गार्सिया लोर्का" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़ेदेरिको गार्सिया लोर्का |संग्रह= }} <Poem> '''इशिदे…) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=फ़ेदेरिको गार्सिया लोर्का | |रचनाकार=फ़ेदेरिको गार्सिया लोर्का | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
− | }} | + | }}{{KKAnthologyDeath}} |
+ | {{KKCatKavita}} | ||
<Poem> | <Poem> | ||
− | '''इशिदेरो दे ब्लास''' | + | '''इशिदेरो दे ब्लास के लिए''' |
कितनी शिद्दत से? | कितनी शिद्दत से? |
02:08, 6 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
इशिदेरो दे ब्लास के लिए
कितनी शिद्दत से?
कितनी शिद्दत से चाहता है घोड़ा
कि वह कुत्ता बन जाए !
कितनी शिद्दत से चाहता है कुत्ता
कि वह बुलबुल हो जाए !
कितनी शिद्दत से चाहती है बुलबुल
कि वह बन जाए भौंरा !
कितनी शिद्दत से चाहता है भौंरा
कि वह घोड़े में तब्दील हो जाए !
और घोड़ा ?
कितनी तेज़ी से झटक लेता है गुलाब से पराग के तीर !
और कैसे तो जाग उठता है
उसके मोटे होंठ के अंतरे से
गुलाब का भूरा रंग !
और गुलाब ?
कैसा तो एक झुंड, रौशनियों और किलकारियों का
जुड़ा हुआ, अपने धड़ में जमी मिश्री से !
और मिश्री ?
कैसे तो खंजर, जो दिखते रहते हैं हर वक़्त
खुली आँखों के सपने में !
और खंजर?
कैसे तो फिरते हैं, नग्न,
अस्तबलों के बाहर की चाँदनी में
लगातार, नाज़ुक लाल गोश्त खोजते!
और मैं,
छज्जों के किनारों पर ढूँढता हुआ
कैसे तो आग के फरिश्ते!
ख़ुद होते हुए भी वही!
पर इन मेहराबों के पलस्तर
कितने भव्य,
कितने अनदेखे,
कितने महीन
बिना शिद्दत के भी!
अंग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीकान्त'