भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"शब्दों की पीड़ा / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> ''' शब्दों …) |
|||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
''' शब्दों की पीड़ा ''' | ''' शब्दों की पीड़ा ''' | ||
+ | |||
+ | दुखते भावों को सहलाते | ||
+ | तरल विचारों को सिमटाते | ||
+ | आज कैद हैं शब्द हमारे | ||
+ | |||
+ | मिथक-श्वांस से किए प्रवाहित | ||
+ | प्राण-पुराण, जो हुए समाहित | ||
+ | शब्द-नयन में, दृष्टि उघारे | ||
+ | |||
+ | लम्पट अर्थों की शमशीरें | ||
+ | खोद रही हैं धीरे-धीरे | ||
+ | नींव हिंद की, कौन उबारे |
16:00, 17 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
शब्दों की पीड़ा
दुखते भावों को सहलाते
तरल विचारों को सिमटाते
आज कैद हैं शब्द हमारे
मिथक-श्वांस से किए प्रवाहित
प्राण-पुराण, जो हुए समाहित
शब्द-नयन में, दृष्टि उघारे
लम्पट अर्थों की शमशीरें
खोद रही हैं धीरे-धीरे
नींव हिंद की, कौन उबारे