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भूलकर जब राह- जब-जब राह...भटका मैं | भूलकर जब राह- जब-जब राह...भटका मैं | ||
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तुम्हीं झलके, हे महाकवि, | तुम्हीं झलके, हे महाकवि, | ||
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सघन तम की आंख बन मेरे लिए, | सघन तम की आंख बन मेरे लिए, | ||
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अकल क्रोधित प्रकृति का विश्वास बन मेरे लिये- | अकल क्रोधित प्रकृति का विश्वास बन मेरे लिये- | ||
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जगत के उन्माद का | जगत के उन्माद का | ||
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परिचय लिए,- | परिचय लिए,- | ||
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और आगत-प्राण का संचय लिए, झलके प्रमन तुम, | और आगत-प्राण का संचय लिए, झलके प्रमन तुम, | ||
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हे महाकवि! सहजतम लघु एक जीवन में | हे महाकवि! सहजतम लघु एक जीवन में | ||
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अखिल का परिणय लिए- | अखिल का परिणय लिए- | ||
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प्राणमय संचार करते शक्ति औ' छवि के मिलन का हास मंगलमय; | प्राणमय संचार करते शक्ति औ' छवि के मिलन का हास मंगलमय; | ||
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मधुर आठों याम | मधुर आठों याम | ||
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विसुध खुलते | विसुध खुलते | ||
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कंठस्वर में तुम्हारे, कवि, | कंठस्वर में तुम्हारे, कवि, | ||
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एक ऋतुओं के विहंसते सूर्य! | एक ऋतुओं के विहंसते सूर्य! | ||
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काल में (तम घोर)- | काल में (तम घोर)- | ||
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बरसाते प्रवाहित रस अथोर अथाह! | बरसाते प्रवाहित रस अथोर अथाह! | ||
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छू, किया करते | छू, किया करते | ||
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आधुनिकतम दाह मानव का | आधुनिकतम दाह मानव का | ||
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साधना स्वर से | साधना स्वर से | ||
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शांत-शीतलतम । | शांत-शीतलतम । | ||
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महाकवि मेरे ! | महाकवि मेरे ! | ||
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23:20, 28 मार्च 2011 के समय का अवतरण
भूलकर जब राह- जब-जब राह...भटका मैं
तुम्हीं झलके, हे महाकवि,
सघन तम की आंख बन मेरे लिए,
अकल क्रोधित प्रकृति का विश्वास बन मेरे लिये-
जगत के उन्माद का
परिचय लिए,-
और आगत-प्राण का संचय लिए, झलके प्रमन तुम,
हे महाकवि! सहजतम लघु एक जीवन में
अखिल का परिणय लिए-
प्राणमय संचार करते शक्ति औ' छवि के मिलन का हास मंगलमय;
मधुर आठों याम
विसुध खुलते
कंठस्वर में तुम्हारे, कवि,
एक ऋतुओं के विहंसते सूर्य!
काल में (तम घोर)-
बरसाते प्रवाहित रस अथोर अथाह!
छू, किया करते
आधुनिकतम दाह मानव का
साधना स्वर से
शांत-शीतलतम ।
हाँ, तुम्हीं हो, एक मेरे कवि :
जानता क्या मैं-
हृदय में भरकर तुम्हारी साँस-
किस तरह गाता,
(ओ विभूति परंपरा की!)
समझ भी पाता तुम्हें यदि मैं कि जितना चाहता हूँ,
महाकवि मेरे !
(1939 में विरचित,'कुछ कविताएँ' नामक कविता-संग्रह से)