"जिन्दगी / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
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+ | देश की छाती दरकते देखता हूँ! | ||
+ | थान खद्दर के लपेटे स्वार्थियों को, | ||
+ | पेट-पूजा की कमाई में जुता मैं देखता हूँ! | ||
+ | सत्य के जारज सुतों को, | ||
+ | लंदनी गौरांग प्रभु की, | ||
+ | लीक चलते देखता हूँ! | ||
+ | डालरी साम्राज्यवादी मौत-घर में, | ||
+ | आँख मूँदे डाँस करते देखता हूँ!! | ||
− | + | देश की छाती दरकते देखता हूँ! | |
+ | मैं अहिंसा के निहत्थे हाथियों को, | ||
+ | पीठ पर बम बोझ लादे देखता हूँ। | ||
+ | देव कुल के किन्नरों को, | ||
+ | मंत्रियों का साज साजे, | ||
+ | देश की जन-शक्तियों का, | ||
+ | खून पीते देखता हूँ, | ||
+ | क्रांति गाते देखता हूँ!! | ||
− | देश की छाती दरकते देखता हूँ! | + | देश की छाती दरकते देखता हूँ! |
− | + | राजनीतिक धर्मराजों को जुएँ में, | |
− | + | द्रोपदी को हारते मैं देखता हूँ! | |
− | + | ज्ञान के सब सूरजों को, | |
− | + | अर्थ के पैशाचिकों से, | |
− | + | रोशनी को माँगते मैं देखता हूँ! | |
− | + | योजनाओं के शिखंडी सूरमों को, | |
− | + | तेग अपनी तोड़ते मैं देखता हूँ!! | |
− | देश की छाती दरकते देखता हूँ! | + | देश की छाती दरकते देखता हूँ! |
− | + | खाद्य मंत्री को हमेशा शूल बोते देखता हूँ | |
− | + | भुखमरी को जन्म देते, | |
− | + | वन-महोत्सव को मनाते देखता हूँ! | |
− | + | लौह-नर के वृद्ध वपु से, | |
− | + | दण्ड के दानव निकलते देखता हूँ! | |
− | + | व्यक्ति की स्वाधीनता पर गाज गिरते देखता हूँ! | |
− | + | देश के अभिमन्युयों को कैद होते देखता हूँ!! | |
− | देश की छाती दरकते देखता हूँ! | + | देश की छाती दरकते देखता हूँ! |
− | + | मुक्त लहरों की प्रगति पर, | |
− | + | जन-सुरक्षा के बहाने, | |
− | + | रोक लगाते देखता हूँ! | |
− | + | चीन की दीवार उठते देखता हूँ! | |
− | + | क्राँतिकारी लेखनी को, | |
− | + | जेल जाते देखता हूँ! | |
− | + | लपलपाती आग के भी, | |
+ | ओंठ सिलते देखता हूँ!! | ||
− | देश की छाती दरकते देखता हूँ! | + | देश की छाती दरकते देखता हूँ! |
− | + | राष्ट्र-जल में कागजी, छवि-यान बहता देखता हूँ, | |
− | + | तीर पर मल्लाह बैठे और हँसते देखता हूँ! | |
− | + | योजनाओं के फरिश्तों को गगन से भूमि आते, | |
− | + | और गोबर चोंथ पर सानंद बैठे, | |
− | + | मौन-मन बंशी बजाते, गीत गाते, | |
− | + | मृग मरीची कामिनी से प्यार करते देखता हूँ! | |
− | + | शून्य शब्दों के हवाई फैर करते देखता हूँ!! | |
− | देश की छाती दरकते देखता हूँ! | + | देश की छाती दरकते देखता हूँ! |
− | + | बूचड़ों के न्याय-घर में, | |
− | + | लोकशाही के करोड़ों राम-सीता, | |
− | + | मूक पशुओं की तरह बलिदान होते देखता हूँ! | |
− | + | वीर तेलंगानवों पर मृत्यु के चाबुक चटकते देखता हूँ! | |
− | + | क्रांति की कल्लोलिनी पर घात होते देखता हूँ! | |
− | + | वीर माता के हृदय के शक्ति-पय को | |
− | + | शून्य में रोते विलपते देखता हूँ!! | |
− | + | ||
− | देश की छाती दरकते देखता हूँ! | + | देश की छाती दरकते देखता हूँ! |
− | + | नामधारी त्यागियों को, | |
− | + | मैं धुएँ के वस्त्र पहने, | |
− | + | मृत्यु का घंटा बजाते देखता हूँ! | |
− | + | स्वर्ण मुद्रा की चढ़ौती भेंट लेते, | |
− | + | राजगुरुओं को, मुनाफाखोर को आशीष देते, | |
− | + | सौ तरह के कमकरों को दुष्ट कह कर, | |
− | + | शाप देते प्राण लेते देखता हूँ!! | |
− | देश की छाती दरकते देखता हूँ! | + | देश की छाती दरकते देखता हूँ! |
− | + | कौंसिलों में कठपुतलियों को भटकते, | |
− | + | राजनीतिक चाल चलते, | |
− | + | रेत के कानून के रस्से बनाते देखता हूँ! | |
− | + | वायुयानों की उड़ानों की तरह तकरीर करते, | |
− | + | झूठ का लम्बा बड़ा इतिहास गढ़ते, | |
− | + | गोखुरों से सिंधु भरते, | |
− | + | देश-द्रोही रावणों को राम भजते देखता हूँ!! | |
− | देश की छाती दरकते देखता हूँ! | + | देश की छाती दरकते देखता हूँ! |
− | + | नाश के वैतालिकों को | |
− | + | संविधानी शासनालय को सभा में | |
− | + | दंड की डौड़ी बजाते देखता हूँ! | |
− | + | कंस की प्रतिमूर्तियों को, | |
− | + | मुन्ड मालाएँ बनाते देखता हूँ! | |
− | + | काल भैरव के सहोदर भाइयों को, | |
− | + | रक्त की धारा बहाते देखता हूँ!! | |
− | देश की छाती दरकते देखता हूँ! | + | देश की छाती दरकते देखता हूँ! |
− | + | व्यास मुनि को धूप में रिक्शा चलाते, | |
− | + | भीम, अर्जुन को गधे का बोझ ढोते देखता हूँ! | |
− | + | सत्य के हरिचंद को अन्याय-घर में, | |
− | + | झूठ की देते गवाही देखता हूँ! | |
− | झूठ | + | द्रोपदी को और शैव्या को, शची को, |
− | + | रूप की दूकान खोले, | |
− | + | लाज को दो-दो टके में बेचते मैं देखता हूँ!! | |
− | देश की छाती दरकते देखता हूँ! | + | देश की छाती दरकते देखता हूँ! |
− | + | मैं बहुत उत्तप्त होकर | |
− | + | भीम के बल और अर्जुन की प्रतिज्ञा से ललक कर, | |
− | + | क्रांतिकारी शक्ति का तूफान बन कर, | |
− | + | शूरवीरों की शहादत का हथौड़ा हाथ लेकर, | |
− | + | श्रृंखलाएँ तोड़ता हूँ | |
− | + | जिन्दगी को मुक्त करता हूँ नरक से!! | |
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− | मैं बहुत उत्तप्त होकर | + | |
− | भीम के बल और अर्जुन की प्रतिज्ञा से ललक कर, | + | |
− | क्रांतिकारी शक्ति का तूफान बन कर, | + | |
− | शूरवीरों की शहादत का हथौड़ा हाथ लेकर, | + | |
− | श्रृंखलाएँ तोड़ता हूँ | + | |
− | जिन्दगी को मुक्त करता हूँ नरक से!! | + | |
(कविता संग्रह, "कहें केदार खरी खरी"" से) | (कविता संग्रह, "कहें केदार खरी खरी"" से) | ||
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23:38, 8 मार्च 2021 के समय का अवतरण
देश की छाती दरकते देखता हूँ!
थान खद्दर के लपेटे स्वार्थियों को,
पेट-पूजा की कमाई में जुता मैं देखता हूँ!
सत्य के जारज सुतों को,
लंदनी गौरांग प्रभु की,
लीक चलते देखता हूँ!
डालरी साम्राज्यवादी मौत-घर में,
आँख मूँदे डाँस करते देखता हूँ!!
देश की छाती दरकते देखता हूँ!
मैं अहिंसा के निहत्थे हाथियों को,
पीठ पर बम बोझ लादे देखता हूँ।
देव कुल के किन्नरों को,
मंत्रियों का साज साजे,
देश की जन-शक्तियों का,
खून पीते देखता हूँ,
क्रांति गाते देखता हूँ!!
देश की छाती दरकते देखता हूँ!
राजनीतिक धर्मराजों को जुएँ में,
द्रोपदी को हारते मैं देखता हूँ!
ज्ञान के सब सूरजों को,
अर्थ के पैशाचिकों से,
रोशनी को माँगते मैं देखता हूँ!
योजनाओं के शिखंडी सूरमों को,
तेग अपनी तोड़ते मैं देखता हूँ!!
देश की छाती दरकते देखता हूँ!
खाद्य मंत्री को हमेशा शूल बोते देखता हूँ
भुखमरी को जन्म देते,
वन-महोत्सव को मनाते देखता हूँ!
लौह-नर के वृद्ध वपु से,
दण्ड के दानव निकलते देखता हूँ!
व्यक्ति की स्वाधीनता पर गाज गिरते देखता हूँ!
देश के अभिमन्युयों को कैद होते देखता हूँ!!
देश की छाती दरकते देखता हूँ!
मुक्त लहरों की प्रगति पर,
जन-सुरक्षा के बहाने,
रोक लगाते देखता हूँ!
चीन की दीवार उठते देखता हूँ!
क्राँतिकारी लेखनी को,
जेल जाते देखता हूँ!
लपलपाती आग के भी,
ओंठ सिलते देखता हूँ!!
देश की छाती दरकते देखता हूँ!
राष्ट्र-जल में कागजी, छवि-यान बहता देखता हूँ,
तीर पर मल्लाह बैठे और हँसते देखता हूँ!
योजनाओं के फरिश्तों को गगन से भूमि आते,
और गोबर चोंथ पर सानंद बैठे,
मौन-मन बंशी बजाते, गीत गाते,
मृग मरीची कामिनी से प्यार करते देखता हूँ!
शून्य शब्दों के हवाई फैर करते देखता हूँ!!
देश की छाती दरकते देखता हूँ!
बूचड़ों के न्याय-घर में,
लोकशाही के करोड़ों राम-सीता,
मूक पशुओं की तरह बलिदान होते देखता हूँ!
वीर तेलंगानवों पर मृत्यु के चाबुक चटकते देखता हूँ!
क्रांति की कल्लोलिनी पर घात होते देखता हूँ!
वीर माता के हृदय के शक्ति-पय को
शून्य में रोते विलपते देखता हूँ!!
देश की छाती दरकते देखता हूँ!
नामधारी त्यागियों को,
मैं धुएँ के वस्त्र पहने,
मृत्यु का घंटा बजाते देखता हूँ!
स्वर्ण मुद्रा की चढ़ौती भेंट लेते,
राजगुरुओं को, मुनाफाखोर को आशीष देते,
सौ तरह के कमकरों को दुष्ट कह कर,
शाप देते प्राण लेते देखता हूँ!!
देश की छाती दरकते देखता हूँ!
कौंसिलों में कठपुतलियों को भटकते,
राजनीतिक चाल चलते,
रेत के कानून के रस्से बनाते देखता हूँ!
वायुयानों की उड़ानों की तरह तकरीर करते,
झूठ का लम्बा बड़ा इतिहास गढ़ते,
गोखुरों से सिंधु भरते,
देश-द्रोही रावणों को राम भजते देखता हूँ!!
देश की छाती दरकते देखता हूँ!
नाश के वैतालिकों को
संविधानी शासनालय को सभा में
दंड की डौड़ी बजाते देखता हूँ!
कंस की प्रतिमूर्तियों को,
मुन्ड मालाएँ बनाते देखता हूँ!
काल भैरव के सहोदर भाइयों को,
रक्त की धारा बहाते देखता हूँ!!
देश की छाती दरकते देखता हूँ!
व्यास मुनि को धूप में रिक्शा चलाते,
भीम, अर्जुन को गधे का बोझ ढोते देखता हूँ!
सत्य के हरिचंद को अन्याय-घर में,
झूठ की देते गवाही देखता हूँ!
द्रोपदी को और शैव्या को, शची को,
रूप की दूकान खोले,
लाज को दो-दो टके में बेचते मैं देखता हूँ!!
देश की छाती दरकते देखता हूँ!
मैं बहुत उत्तप्त होकर
भीम के बल और अर्जुन की प्रतिज्ञा से ललक कर,
क्रांतिकारी शक्ति का तूफान बन कर,
शूरवीरों की शहादत का हथौड़ा हाथ लेकर,
श्रृंखलाएँ तोड़ता हूँ
जिन्दगी को मुक्त करता हूँ नरक से!!
(कविता संग्रह, "कहें केदार खरी खरी"" से)