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"शब्दों का इन्तज़ार / अमरजीत कौंके" के अवतरणों में अंतर

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मैं भी नहीं बुलाता उन्हें
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दूर जाने देता हूँ
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अदृश्य सीमाओं तक
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उन्हें परिंदे बन कर
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धीरे-धीरे
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अनंत आकाश में
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लुप्त होते देखता हूँ
  
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नहीं !
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जबरन बाँध कर
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नहीं रखता मैं शब्द
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डोरियों से
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जंज़ीरों में
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पिंजरों में कैद करके
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नहीं रखता मैं शब्द
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मन को
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खाली हो जाने देता हूँ
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सूने क्षितिज की भाँति
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कितनी बार
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अपनी ख़ामोशी को
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अपने भीतर गिर कर
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टूटते हुए
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देखता हूँ मैं
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लेकिन इस टूटन को
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अर्थ देने के लिए
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शब्दों की मिन्नत नहीं करता
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टूटने देता हूँ
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चटखने देता हूँ
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ख़ामोशी को अपने भीतर
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मालूम होता है मुझे
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कि कहीं भी चले जाएँ चाहे
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अनंत सीमाओं में
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अदृश्य दिशाओं में
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शब्द
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आख़िर लौट कर आएँगे
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ये मेरे पास एक दिन
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आएँगे
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मेरे कवि-मन के आँगन में
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मरूस्थल बनी
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मेरे मन की धरा पर
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बरसेंगे रिमझिम
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भर देंगे
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सोंधी महक से मन
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कहीं भी हों
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शब्द चाहे
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दूर
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बहुत दूर
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लेकिन फिर भी
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शब्दों के इन्तज़ार में
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भरा-भरा रहता
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अंत का खाली मन ।
  
  
 
'''मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा
 
'''मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा
 
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12:44, 3 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण

शब्द जब मेरे पास नहीं होते
मैं भी नहीं बुलाता उन्हें
दूर जाने देता हूँ
अदृश्य सीमाओं तक
उन्हें परिंदे बन कर
धीरे-धीरे
अनंत आकाश में
लुप्त होते देखता हूँ

नहीं !

जबरन बाँध कर
नहीं रखता मैं शब्द
डोरियों से
जंज़ीरों में
पिंजरों में कैद करके
नहीं रखता मैं शब्द

मन को
खाली हो जाने देता हूँ
सूने क्षितिज की भाँति

कितनी बार
अपनी ख़ामोशी को
अपने भीतर गिर कर
टूटते हुए
देखता हूँ मैं
लेकिन इस टूटन को
अर्थ देने के लिए
शब्दों की मिन्नत नहीं करता

टूटने देता हूँ
चटखने देता हूँ
ख़ामोशी को अपने भीतर
मालूम होता है मुझे
कि कहीं भी चले जाएँ चाहे
अनंत सीमाओं में
अदृश्य दिशाओं में
शब्द

आख़िर लौट कर आएँगे
ये मेरे पास एक दिन

आएँगे
मेरे कवि-मन के आँगन में
मरूस्थल बनी
मेरे मन की धरा पर
बरसेंगे रिमझिम
भर देंगे
सोंधी महक से मन

कहीं भी हों
शब्द चाहे

दूर
बहुत दूर

लेकिन फिर भी
शब्दों के इन्तज़ार में
भरा-भरा रहता
अंत का खाली मन ।


मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा