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"अस्तोदय की वीणा / रामनरेश त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर

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बाजे अस्तोदय की वीणा-क्षण-क्षण गगनांगन में रे,
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यह उत्थान पतन है व्यापक प्रति कण-कण में रे
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बाजे अस्तोदय की वीणा--क्षण-क्षण गगनांगण में रे।
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::हुआ प्रभात छिप गए तारे,
ह्रास विकास विलोक इंदु में, बिंदु सिन्धु में सिन्धु बिंदु में,
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::संध्या हुई भानु भी हारे,
 
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यह उत्थान पतन है व्यापक प्रति कण-कण में रे॥
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कुछ भी है थिर नहीं जगत के संघर्षण में रे
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::ऐसी ही गति तेरी होगी,  
ऐसी ही गति तेरी होगी, निश्चित है क्यों देरी होगी,
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गाफ़िल तू क्यों है विनाश के आकर्षण में रे॥
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::निश्चय करके फिर न ठहर तू,  
गाफ़िल तू क्यों है विनाश के आकर्षण में रे
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विजयी बनकर क्यों न रहे तू जीवन-रण में रे?
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विजयी बनकर क्यों न रहे तू जीवन-रण में रे 
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16:08, 9 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

बाजे अस्तोदय की वीणा--क्षण-क्षण गगनांगण में रे।
हुआ प्रभात छिप गए तारे,
संध्या हुई भानु भी हारे,
यह उत्थान पतन है व्यापक प्रति कण-कण में रे॥
ह्रास-विकास विलोक इंदु में,
बिंदु सिन्धु में सिन्धु बिंदु में,
कुछ भी है थिर नहीं जगत के संघर्षण में रे॥
ऐसी ही गति तेरी होगी,
निश्चित है क्यों देरी होगी,
गाफ़िल तू क्यों है विनाश के आकर्षण में रे॥
निश्चय करके फिर न ठहर तू,
तन रहते प्रण पूरण कर तू,
विजयी बनकर क्यों न रहे तू जीवन-रण में रे?