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"सात कविताएँ-7 / लाल्टू" के अवतरणों में अंतर

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मुड़-मुड़ उसके लिए दढ़ियल बरगद बनने की प्रतिज्ञा करता हूँ ।
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सन् 2000 में वह, मेरी दाढ़ी खींचने पर धू-धू लपटें उसे घेर लेंगीं ।
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मेरी नियति पहाड़ बनने के अलावा और कुछ नहीं ।
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उसकी खुली आँखों को सिरहाने तले सँजोता हूँ ।
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उड़नखटोले पर बैठते वक़्त वह मेरे पास होगा ।
  
मुड़ मुड़ उसके लिए दढ़ियल बरगद बनने की प्रतिज्ञा करता हूँ.
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युद्ध सरदारो, सुनो! मैं उसे बूँद-बूँद अपने सीने में सींचूँगा
सन् 2000 में वह मेरी दाढ़ी खींचने पर धू धू लपटें उसे घेर लेंगीं.
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उसे बादल बन ढँक लूँगा उसकी आँखों में आँसू बन छल-छल छलकूँगा
मेरी नियति पहाड़ बनने के अलावा और कुछ नहीं.
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उसके होंठों में विस्मय की ध्वनि तरंग बन बजूँगा ।
उसकी खुली आँखों को सिरहाने तले सँजोता हूँ.
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तुम्हारी लपटों को मैं लगातार प्यार की बारिश बन बुझाऊँगा
उड़नखटोले पर बैठते वक्त वह मेरे पास होगा.
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युद्ध सरदारों सुनो! मैं उसे बूँद बूँद अपने सीने में सींचूँगा.
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उसे बादल बन ढँक लूँगा. उसकी आँखों में आँसू बन छल छल छलकूँगा.
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उसके होंठों में विस्मय की ध्वनि तरंग बन बजूँगा।
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तुम्हारी लपटों को मैं लगातार प्यार की बारिश बन बुझाऊँगा.
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12:03, 11 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण

मुड़-मुड़ उसके लिए दढ़ियल बरगद बनने की प्रतिज्ञा करता हूँ ।
सन् 2000 में वह, मेरी दाढ़ी खींचने पर धू-धू लपटें उसे घेर लेंगीं ।
मेरी नियति पहाड़ बनने के अलावा और कुछ नहीं ।
उसकी खुली आँखों को सिरहाने तले सँजोता हूँ ।
उड़नखटोले पर बैठते वक़्त वह मेरे पास होगा ।

युद्ध सरदारो, सुनो! मैं उसे बूँद-बूँद अपने सीने में सींचूँगा ।
उसे बादल बन ढँक लूँगा । उसकी आँखों में आँसू बन छल-छल छलकूँगा ।
उसके होंठों में विस्मय की ध्वनि तरंग बन बजूँगा ।
तुम्हारी लपटों को मैं लगातार प्यार की बारिश बन बुझाऊँगा ।