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"बीज की तरह / नंद भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर
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एक बरती हुई दिनचर्या अब | एक बरती हुई दिनचर्या अब | ||
− | छूट गई है | + | छूट गई है आँख से बाहर |
− | उतर रही है धीरे धीरे | + | उतर रही है धीरे-धीरे |
आसमान से गर्द | आसमान से गर्द | ||
दूर तक दिखने लगा है | दूर तक दिखने लगा है | ||
रेत का विस्तार | रेत का विस्तार | ||
उड़ान की तैयारी से पूर्व | उड़ान की तैयारी से पूर्व | ||
− | पंछी जैसे | + | पंछी जैसे दरख़्तों की डाल पर ! |
− | जानता | + | जानता हूँ, ज्वार उतरने के साथ |
यहीं किनारे पर | यहीं किनारे पर | ||
− | छूट | + | छूट जाएँगी कश्तियाँ |
शंख-घोंघे-सीपियों के खोल | शंख-घोंघे-सीपियों के खोल | ||
− | अवशेषों में अब | + | अवशेषों में अब कहाँ जीवन ? |
− | जीवनदायी | + | जीवनदायी हवाएँ बहती हैं |
आदिम बस्तियों के बीच | आदिम बस्तियों के बीच | ||
उन्हीं के सहवास में रचने का | उन्हीं के सहवास में रचने का | ||
अपना सुख | अपना सुख | ||
− | निरापद हरियाली की | + | निरापद हरियाली की छाँव में ! |
− | इससे पहले कि | + | इससे पहले कि अँधेरा आकर |
− | + | ढँक ले फलक तक फैले | |
दीठ का विस्तार, | दीठ का विस्तार, | ||
मुझे पानी और मिट्टी के बीच | मुझे पानी और मिट्टी के बीच | ||
एक बीज की तरह | एक बीज की तरह | ||
− | बने रहना है पृथ्वी की कोख में! | + | बने रहना है पृथ्वी की कोख में ! |
+ | </poem > |
15:46, 16 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
एक बरती हुई दिनचर्या अब
छूट गई है आँख से बाहर
उतर रही है धीरे-धीरे
आसमान से गर्द
दूर तक दिखने लगा है
रेत का विस्तार
उड़ान की तैयारी से पूर्व
पंछी जैसे दरख़्तों की डाल पर !
जानता हूँ, ज्वार उतरने के साथ
यहीं किनारे पर
छूट जाएँगी कश्तियाँ
शंख-घोंघे-सीपियों के खोल
अवशेषों में अब कहाँ जीवन ?
जीवनदायी हवाएँ बहती हैं
आदिम बस्तियों के बीच
उन्हीं के सहवास में रचने का
अपना सुख
निरापद हरियाली की छाँव में !
इससे पहले कि अँधेरा आकर
ढँक ले फलक तक फैले
दीठ का विस्तार,
मुझे पानी और मिट्टी के बीच
एक बीज की तरह
बने रहना है पृथ्वी की कोख में !