भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सत्य का कत्ल हुआ / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कुहकी कोयल खड़े पेड़ …) |
छो ("सत्य का कत्ल हुआ / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:46, 9 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
सरेआम
सत्य का कत्ल हुआ
मक्कार मकड़ी, तुरन्त,
सिर से पैर तक जाला बुन गई
कड़ुआ धुआँ बंदी हुआ
केस चला
राह ने गवाही न दी
धूप ने कुछ न कहा
धरती आई।
मिट्टी बोली :
शव ने स्वयं कहा :
लकवा मार गया।
न्यायी संशय
भ्रमवश बोला :
कैदी छूट गया।
रचनाकाल: १५-०९-१९६५