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"गोरख बाणी / गोरखनाथ" के अवतरणों में अंतर

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                  नाथ बोले अमृत बाणी
मरो वे जोगी मरो, मरो मरण है मीठा
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                  वरिषेगी कंबली भीजैगा पाणी ।
तिस मरणी मरो जिस मरणी गोरख मरि दीठा
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गाडी पडरवा बांधिले शूंटा, चले  दमामा बाजिलै ऊंटा ।
 
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कऊवा की डाली पीपल बासे, मूसा कै सबद बिलइया नासे ।
हबकि न बोलिबा, ठबकि न चलिबा, धीरे धरीबा पाँव
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चलै बटावा  थाकी बाट, सोवै डूकरिया ठोरे षाट ।
गरब न करिबा, सहजै रहिबा, भणत गौरष रावं
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ढूकिले कूकर भूकिले चोर, काढै धणी पुकारे ढोर ।
 
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उजड़ षेडा नगर मझारी, तलि गागर ऊपर पनिहारी ।
गोरक्ष कहे सुण हरे अवधू , जग में ऐसै रहणां
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मगरी परि चूल्हा धून्धाई, पोवणहारा कों  रोटी खाई ।
आंषे देषिबा, कानै सुणिबा, मुष थै कछु न कहणा
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कामिनि  जलै अंगीठी तापै, विच  बैसंदर थरहर  काँपे ।
 
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एक जु रढीया रढ़ती आई, बहू बिवाई सासू जाई । 
आसन दृढ़, आहार दृढ़, जो निद्रा दृढ़ होय
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नगरी को पाणी  कूई  आवै, उलटी चरचा गोरष गावै ।। 
नाथ कहें सुन बालका, मरे ना बूढ़ा होय
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शिव गोरक्ष यह मंत्र है, सर्व सुखों का सार
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जपो बैठ एकान्त में, तन की सुधी बिसार
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शिव गोरक्ष शुभनाम में, शक्ति भरी आगाध न
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लेने से हैं तर गये, नीच कोटि के व्याध
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अजपा जपे शून्य मर धरे, पांचो इंद्रिय निग्रह करे
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ब्रहम् अग्नि में होमे काया, तासू महादेव बन्दे पाया
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मन मूरख समझे नहीं, योगमार्ग की बात
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अति चंचल भटकत फिरे, करे बहुत उत्पात
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मन मन्दिर में वास है, पाप पुण्य का ज्ञान
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पुण्य रुप मन शुद्ध है, पाप अशुद्ध महान
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21:53, 6 मई 2011 के समय का अवतरण

                  नाथ बोले अमृत बाणी
                  वरिषेगी कंबली भीजैगा पाणी ।
गाडी पडरवा बांधिले शूंटा, चले दमामा बाजिलै ऊंटा ।
कऊवा की डाली पीपल बासे, मूसा कै सबद बिलइया नासे ।
चलै बटावा थाकी बाट, सोवै डूकरिया ठोरे षाट ।
ढूकिले कूकर भूकिले चोर, काढै धणी पुकारे ढोर ।
उजड़ षेडा नगर मझारी, तलि गागर ऊपर पनिहारी ।
मगरी परि चूल्हा धून्धाई, पोवणहारा कों रोटी खाई ।
कामिनि जलै अंगीठी तापै, विच बैसंदर थरहर काँपे ।
एक जु रढीया रढ़ती आई, बहू बिवाई सासू जाई ।
नगरी को पाणी कूई आवै, उलटी चरचा गोरष गावै ।।