भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आज पहली बात / भारत भूषण" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem> आज पहली बात पहली रात साथी चांदनी ओढ़े धरा सोई हुई है श्याम अलको…)
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=भारत भूषण
 +
}}
 +
{{KKCatGeet}}
 
<poem>
 
<poem>
 
आज पहली बात पहली रात साथी
 
आज पहली बात पहली रात साथी
  
चांदनी ओढ़े धरा सोई हुई है
+
चाँदनी ओढ़े धरा सोई हुई है
 
श्याम अलकों में किरण खोई हुई है
 
श्याम अलकों में किरण खोई हुई है
 
प्यार से भीगा प्रकृति का गात साथी
 
प्यार से भीगा प्रकृति का गात साथी
पंक्ति 8: पंक्ति 13:
  
 
मौन सर में कंज की आँखें मुंदी हैं
 
मौन सर में कंज की आँखें मुंदी हैं
गोद में प्रिय भृंग हैं बाहें बंधी हैं
+
गोद में प्रिय भृंग हैं बाहें बँधी हैं
 
दूर है सूरज, सुदूर प्रभात साथी
 
दूर है सूरज, सुदूर प्रभात साथी
 
आज पहली बात पहली रात साथी
 
आज पहली बात पहली रात साथी
पंक्ति 15: पंक्ति 20:
 
खुद किसी के हो चलो अपना बनाओ
 
खुद किसी के हो चलो अपना बनाओ
 
है यही जीवन, नहीं अपघात साथी
 
है यही जीवन, नहीं अपघात साथी
आज पहली बात पहली रात साथी </poem>
+
आज पहली बात पहली रात साथी  
 +
</poem>

14:01, 18 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

आज पहली बात पहली रात साथी

चाँदनी ओढ़े धरा सोई हुई है
श्याम अलकों में किरण खोई हुई है
प्यार से भीगा प्रकृति का गात साथी
आज पहली बात पहली रात साथी

मौन सर में कंज की आँखें मुंदी हैं
गोद में प्रिय भृंग हैं बाहें बँधी हैं
दूर है सूरज, सुदूर प्रभात साथी
आज पहली बात पहली रात साथी

आज तुम भी लाज के बंधन मिटाओ
खुद किसी के हो चलो अपना बनाओ
है यही जीवन, नहीं अपघात साथी
आज पहली बात पहली रात साथी