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एक चिनगारी के लिए / नवारुण भट्टाचार्य
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15:19, 19 नवम्बर 2010
कई-कई छवियाँ टुकड़े-टुकड़े काँच में
कब खिलेगी कली बारूद की गन्ध से उन्मत्त
सारा शहर उथल-पुथल भीषण क्रोध में होगा युद्ध
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</poem>
अनिल जनविजय
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