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"दीवाली के बाद / शैलेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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राह देखते 'श्री लक्ष्मी' के शुभागमन की,
 
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बरबस आँख मुंदी निर्धन की !
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तेल हो गया ख़त्म, बुझ गए दीपक सारे,
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लेकिन जलती रही दिवाली मुक्त गगन की !
  
बरबस आंख मुंदी निर्धन की!
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चूहे आए कूदे-फांदे, और खा गए
 
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सात देवताओं को अर्पित खील-बताशा;
 
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मिट्टी के लक्ष्मी-गनेश गिर चूर हो गए
 
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दीवारें चुपचाप देखती रहीं तमाशा !
 
दीवारें चुपचाप देखती रहीं तमाशा !
 
  
 
चलती रही रात भर उछल-कूद चूहों की
 
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किन्तु न टूटी नींद थके निर्धन की;
 
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सपने में देखा उसने आई है लक्ष्मी
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पावों में बेड़ियाँ, हाथ हथकड़ियाँ पहने !
  
सपने में देखा उअसने आई है लक्ष्मी
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फूट-फूट रोई वह और लगी यों कहने :
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"पगले, मैं बंदिनी बनी हूँ धनवालों की,
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पाँव बँधे हैं कैसे आऊँ पास तुम्हारे ?
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नाग बने छाती पर बैठे हैं हत्यारे !
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राम, तुम्हारी हूँ मैं, लेकिन हरी गई हूँ,
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सोने की लंका में लाकर धरी गई हूँ !
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बोलो, तुम मुझको कब बन्धन-मुक्त करोगे ?
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दुख संकट से मुक्त विश्व सँयुक्त करोगे ?"
  
पावों में बेड़ियां, हाथ हथकड़ियां पहने !
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धनवालों की दीवाली की रात ढल गई,
 
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अब ग़रीब का दिन है, दिन का उजियाला  है !
फूट-फूट रोई वह और लगी यों कहने :
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लोगों ने की सभा, फ़ैसला कर डाला है —
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"एक साथ हम सब रावण पर वार करेंगे,
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अपनी दुनिया का हम ख़ुद उद्धार करेंगे !
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अन्नपूर्णा लक्ष्मी को आज़ाद करेंगे,
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स्वर्ग इसी धरती पर हम आबाद करेंगे !"
  
"पगले, मैं बंदिनी बनी हूं धनवालों की
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'''1949 में रचित
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13:45, 23 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण

राह देखते 'श्री लक्ष्मी' के शुभागमन की,
बरबस आँख मुंदी निर्धन की !
तेल हो गया ख़त्म, बुझ गए दीपक सारे,
लेकिन जलती रही दिवाली मुक्त गगन की !

चूहे आए कूदे-फांदे, और खा गए —
सात देवताओं को अर्पित खील-बताशा;
मिट्टी के लक्ष्मी-गनेश गिर चूर हो गए
दीवारें चुपचाप देखती रहीं तमाशा !

चलती रही रात भर उछल-कूद चूहों की
किन्तु न टूटी नींद थके निर्धन की;
सपने में देखा उसने आई है लक्ष्मी
पावों में बेड़ियाँ, हाथ हथकड़ियाँ पहने !

फूट-फूट रोई वह और लगी यों कहने :
"पगले, मैं बंदिनी बनी हूँ धनवालों की,
पाँव बँधे हैं कैसे आऊँ पास तुम्हारे ?
नाग बने छाती पर बैठे हैं हत्यारे !
राम, तुम्हारी हूँ मैं, लेकिन हरी गई हूँ,
सोने की लंका में लाकर धरी गई हूँ !
बोलो, तुम मुझको कब बन्धन-मुक्त करोगे ?
दुख संकट से मुक्त विश्व सँयुक्त करोगे ?"

धनवालों की दीवाली की रात ढल गई,
अब ग़रीब का दिन है, दिन का उजियाला है !
लोगों ने की सभा, फ़ैसला कर डाला है —
"एक साथ हम सब रावण पर वार करेंगे,
अपनी दुनिया का हम ख़ुद उद्धार करेंगे !
अन्नपूर्णा लक्ष्मी को आज़ाद करेंगे,
स्वर्ग इसी धरती पर हम आबाद करेंगे !"

1949 में रचित