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− | वे बहादुर संकटों को जीत कर | + | वे बहादुर संकटों को जीत कर बढ़ते रहे |
कंटकों का सामना करते रहे जिसके चरण | कंटकों का सामना करते रहे जिसके चरण | ||
− | ओ बटोही! फूल उसके शीश पर | + | ओ बटोही! फूल उसके शीश पर चढ़ते रहे । |
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शौर्य के सूरज चमकते आ रहे हैं, | शौर्य के सूरज चमकते आ रहे हैं, | ||
− | + | साँझ उनके व्योम पर आती नहीं है | |
आरती के दीप जलते जा रहे हैं | आरती के दीप जलते जा रहे हैं | ||
− | आँधियों की जीत हो पाती नहीं | + | आँधियों की जीत हो पाती नहीं है । |
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− | सूर्य चमका | + | सूर्य चमका साँझ की सौगात दे कर बुझ गया |
चाँद चमका और काली रात दे कर बुझ गया | चाँद चमका और काली रात दे कर बुझ गया | ||
किंतु माटी के दिये की देन ही कुछ और है | किंतु माटी के दिये की देन ही कुछ और है | ||
− | रात हमने दी जिसे वो प्रात दे कर बुझ | + | रात हमने दी जिसे वो प्रात दे कर बुझ गया । |
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21:27, 30 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
1.
जो तिमिर के भाल पर उजले नख़त पढ़ते रहे
वे बहादुर संकटों को जीत कर बढ़ते रहे
कंटकों का सामना करते रहे जिसके चरण
ओ बटोही! फूल उसके शीश पर चढ़ते रहे ।
2.
शौर्य के सूरज चमकते आ रहे हैं,
साँझ उनके व्योम पर आती नहीं है
आरती के दीप जलते जा रहे हैं
आँधियों की जीत हो पाती नहीं है ।
3.
सूर्य चमका साँझ की सौगात दे कर बुझ गया
चाँद चमका और काली रात दे कर बुझ गया
किंतु माटी के दिये की देन ही कुछ और है
रात हमने दी जिसे वो प्रात दे कर बुझ गया ।