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11:58, 14 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
सूरज के साथ में
सबेरे की आग है
पूरब में पैदा हुआ जीवन का राग है
पंखों के उड़ने का अंबर में नाद है
कोयल की बोली से झरता प्रमाद है
किरनों के मेले में गाता प्रकाश है
बीना-सा बजता हुआ
मौसम का
श्वास है।
रचनाकाल: ०८-१०-१९७५