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श्रष्टि में शीतल सुमन भी खिल सकेंगे आज कैसे !
स्वार्थ से उन्मत्त मानव ,मिल सकेंगे आज कैसे !
रक्त शोषण की भयंकर भावना जो पल रही है !
आज होली जल रही है !
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