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आम के हैं पेड़ बाबा / अनूप अशेष

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आम के हैं पेड़ बाबा
पिता फल
नाती टिकोरे हैं ।
भात में है दूध
रोटी में रहे घी,
पोपले मुँह की
असीसें
हम रहे हैं जी ।
 
नीम की हैं छाँह बाबा
खाटें अपनी
रहे जोरे हैं ।
 
खेल में घुटने
दुकानों रहे खिसे,
मीठी गोली
बात में बादाम-से पीसे ।
 
शाम की ठंडई बाबा
धूप दिन के
रहे घोरे हैं ।
 
भूख की कोरों में गीले
फूल में सरसों,
पिता में कुछ ढूँढ़ते
जैसे रहे बरसों ।
 
खेतों की हैं मेंड़ बाबा
धान-गंधों
रहे बोरे हैं ।
</poem>
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