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|रचनाकार=पूर्णिमा वर्मन
}}
[[Category:गीत]]{{KKCatGeet}}<poem>दुनिया के मेले में एक दीप मेराढेर से धुँधलके में ढूँढ़ता सवेरा वंदन अभिनंदन मेंखोया उजियाराउत्सव के मंडप में आभिजात्य साराभरा रहा शहर रौशनी से हमारामन में पर छिपा रहा पूरा अंधियारा जिसने अंधियारे का साफ़ किया डेराजिसने उजियारे का रंग वहां फेराएक दीप मेरा सड़कों पर भीड़ बहुतसूना गलियाराअंजुरी भर पंचामृत बाकी जल खारासप्त सुर तीन ग्राम अपना इकताराछोटे से मंदिर का ज्योतित चौबारा
दुनिया के मेले में <br>एक दीप मेरा<br>ढेर से धुँधलके में <br>ढूँढ़ता सवेरा <br>वंदन अभिनंदन में<br> खोया उजियारा<br>उत्सव के मंडप में <br>आभिजात्य सारा<br>भरा रहा शहर <br>रौशनी से हमारा<br>मन में पर छिपा रहा <br>पूरा अंधियारा <br>जिसने अंधियारे का साफ़ किया डेरा<br>जिसने उजियारे का रंग वहां फेरा<br>एक दीप मेरा <br>सड़कों पर भीड़ बहुत<br> सूना गलियारा<br>अंजुरी भर पंचामृत <br>बाकी जल खारा<br>सप्त सुर तीन ग्राम <br>अपना इकतारा<br>छोटे से मंदिर का <br>ज्योतित चौबारा <br><br>जिसने कल्याण तीव्र मध्यम में टेरा<br>जिससे इन साँसों पर चैन का बसेरा<br>एक दीप मेरा<br><br/poem>
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