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Kavita Kosh से
फिर जो भी सुनाना हो, खुशी से सुनाइए
जाकर कहीं भी प्यार की दुनिया बसाइए
मुँह पर भले ही बेरुखी हमसे दिखाइए
कुछ मैं भी अपने आप को धीरज सीखा सिखा रहा कुछ आप भी तो खुद ख़ुद को तड़पना सिखाइए
मुस्कान नहीं होठों पर, आँखें भरी-भरी