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Kavita Kosh से
हाथ डाँड़ों पर नहीं, किस्मत को कहते हैं बुरा
नाव खुद ख़ुद ही डूबती जाती, समुन्दर समन्दर क्या करें!
पूछनी थी जब न पूछी बात, मुरझाये गुलाब
फूल अब बरसा करें उनपर कि पत्थर, क्या करें!
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