भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नज़र नज़र से मिलाओ कि हम भी देख सकें
हँसी तो होठों होँठों पे लाओ कि हम भी देख सकें
कुछ ऐसे प्यार दिखाओ कि हम भी देख सकें
हमारे बाग़ में उतरी हैं बिजलियाँ कैसी
हटो भी , काली घटाओ! कि हम भी देख सकें
गये किधर वे उमंगोभरे उमंगो भरे बहार के दिन
दिया कोई तो जलाओ कि हम भी देख सकें
2,913
edits