भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
तुझे देखे परदा उठाके जो किसी दूसरे की मजाल क्या!
ये तो आईने आइने का कमाल है कि हज़ार रंग बदल सके
तेरे प्यार में है पहुँच गया, मेरा दिल अब ऐसे मुकाम मुक़ाम पर
कि न बढ़ सके, न ठहर सके, न पलट सके, न निकल सके