भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दूर्वांचल / अज्ञेय

144 bytes added, 05:30, 13 अगस्त 2012
{{KKRachna
|रचनाकार=अज्ञेय
|संग्रह=हरी घास पर क्षण भर / अज्ञेय; सुनहरे शैवाल / अज्ञेय
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
: पार्श्व गिरी गिरि का नम्र, चीड़ों में
डगर चढ़ती उमंगों-सी।
बिछी पैरों में नदी ज्यों दर्द की रेखा।
विहग-शिशु मौन नीड़ों में।
मैंने मैं ने आँख भर देखा।दिया मन को दिलासा-- पुन: आऊंगा।आऊँगा।(भले ही बरस दिन-दिन- अनगिन युगों के बाद !)
क्षितिज ने पलक-सी खोली,
तमक कर दामिनी बोली--
'अरे यायावर, रहेगा याद?'
तमक कर दामिनी बोली-
'अरे यायावर! रहेगा याद?'
 
'''माफ्लङ् (शिलङ्), 22 सितम्बर, 1947'''
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits