भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कृष्ण दर्शन / सूरदास

1 byte added, 13:13, 9 अक्टूबर 2007
राधा चलहु भवनहिं जाहि ।
 
कबहिं की हम जमुन आई, कहहिं अरु पछिताहिं ॥
हम चलीं घर तुमहुँ आवहु, सोच भयौ मन माहिं
 
सूर राधा सहित गोपी, चलीं ब्रज-समुहाहिं ॥5॥
की हम तुमसौ कहति रहीं ज्यौं, साँच कहौ की तैसे है ॥
 
नटवर-वेष काछनी काछे, अंगनि रति-पति-सै से हैं ।