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|रचनाकार=शिवदीन राम जोशी
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घन गरजत बरसत है मिहरा |बिजरी चमके डर मोहि लागे, प्यारा लगेरी मिहरा || घन...दादुर मोर पपिहरा बोले, आम की डाल कोयालियाँ बोले |पिहू-पिहू सबद सुनो श्रवनन से, मानत ना सखी ये मिहरा || घन...सोय रही रतियाँ अंधियारी, नींद उडी उड़ी नैनन ते प्यारी |मोरे श्याम श्याम ना घर पर, सोयी जगावत ये मिहरा || घन...कहूँ किसे मन ना सखी लागे, बिरहनि रैनन में नित जागे |कहे शिवदीन राधिका अेकली, क्यूँ बरसत है ये मिहरा || घन...आ नंदलाल पार रही हेला, मैं अलबेली तू अलबेला |आजा तपन बुझाजा बुझा जा मन की, देखूँ बरसे ये मिहरा || घन...</poem>
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