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मां अर म्हैं /अंकिता पुरोहित

28 bytes added, 12:58, 16 अक्टूबर 2013
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita‎}}{{KKCatRajasthaniRachna}}<poem>मां कद झलाया
सगळा बरत
ठाह नीं पण करूं
थूं कद बैठगी
ऊंडै आय’र म्हारै
है ज्यूं री ज्यूं?</poem>
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