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भजो रे भैया राम गोविंद हरी ।<br>राम गोविंद हरी भजो रे भैया राम गोविंद हरी ॥<br><br>
जप तप साधन नहिं कछु लागत, खरचत नहिं गठरी ॥<br>संतत संपत सुख के कारन, जासे भूल परी ॥<br>कहत कबीर राम नहीं जा मुख, ता मुख धूल भरी ॥<br><br>
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