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तमाशा / बोधिसत्व

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|रचनाकार=बोधिसत्व
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<poem>
तमाशा हो रहा है
और हम ताली बजा रहे हैं
मदारी
पैसे से पैसा बना रहा है
हम ताली बजा रहे हैं
मदारी साँप को
दूध पिला रहा हैं
हम ताली बजा रहे हैं
तमाशा हो मदारी हमारा लिंग बदल रहा है<br>और हम ताली बजा रहे हैं<br><br>
मदारी<br>अपने जमूरे का गला काटकरपैसे से पैसा बना मदारी कह रहा है<br>'ताली बजाओ ज़ोर से'और हम ताली बजा रहे हैं<br><br>
मदारी साँप को<br>'''अब इस कविता का राजस्थानी भावानुवाद पढ़िए'''दूध पिला रहा हैं<br> बोधिसत्व हम ताली बजा रहे हैं<br><br> तमासौ
मदारी हमारा लिंग बदल रहा तमासौ व्है रैयौ है<br>हम ताली बजा रहे हैं<br><br>अर अपां ताळी बजाय रैया हां मदारी पीसां सूं पीसा बणाय रैयौ है
अपने जमूरे का गला काट कर<br>मदारी सांप नै दूध पाय रैयौ हैअपां ताळी बजाय रैया हां  मदारी कह रहा अपां नै नाजर बणाय रैयौ है-<br>अपां ताळी बजाय रैया हां  आपरै जमूरै रौ गळौ वाड'ताली बजाओ मदारी कैय रैयौ है ताळी बजावौ जोर सेसूं अर अपां ताळी बजाय रैया हां ! '''हिन्दी कवितावां रौ राजस्थानी उल्थौ : मीठेस निरमोही'''<br>और हम ताली बजा रहे हैं।<br><br/poem>
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