भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
वो कोई और न था चंद ख़ुश्क पत्ते थे,
शजर से टूट के जो फ़स्ल-ए-गुल पे रोए थे|
वो कोई और अभी अभी तुम्हें सोचा तो कुछ था चंद ख़ुश्क पत्ते थेयाद आया,<br>शजर अभी अभी तो हम एक दूसरे से टूट के जो फ़स्ल-ए-गुल पे रोए बिछड़े थे|<br><br>
अभी अभी तुम्हें सोचा तो कुछ न याद आयातुम्हारे बाद चमन पर जब इक नज़र डाली,<br>अभी अभी तो हम एक दूसरे से बिछड़े कली कली में ख़िज़ां के चिराग़ जलते थे|<br><br>
तुम्हारे बाद चमन पर जब इक नज़र डालीतमाम उम्र वफ़ा के गुनाहगार रहे,<br>कली कली में ख़िज़ां के चिराग़ जलते ये और बात कि हम आदमी तो अच्छे थे|<br><br>
तमाम उम्र वफ़ा के गुनाहगार रहेशब-ए-ख़ामोश को तन्हाई ने ज़बाँ दे दी,<br>ये और बात कि हम आदमी तो अच्छे पहाड़ गूँजते थे दश्त सन-सनाते थे|<br><br>
शब-ए-ख़ामोश को तन्हाई ने ज़बाँ दे दीवो एक बार मरे जिनको था हयात से प्यार,<br>पहाड़ गूँजते जो जि़न्दगी से गुरेज़ाँ थे दश्त सन-सनाते रोज़ मरते थे|<br><br>
वो एक बार मरे जिनको था हयात से प्यारनए ख़याल अब आते है ढल के ज़ेहन में,<br>जो जि़न्दगी से गुरेज़ाँ थे रोज़ मरते हमारे दिल में कभी खेत लह-लहाते थे|<br><br>
नए ख़याल अब आते ये इरतीक़ा का चलन है ढल के ज़ेहन कि हर ज़माने में,<br>हमारे दिल में कभी खेत लह-लहाते पुराने लोग नए आदमी से डरते थे|<br><br>
ये इरतीक़ा का चलन है कि हर ज़माने में,<br>पुराने लोग नए आदमी से डरते थे|<br><br> 'नदीम' जो भी मुलाक़ात थी अधूरी थी,<br>कि एक चेहरे के पीछे हज़ार चेहरे थे |<br><br/poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits