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[[Category:ग़ज़ल]]
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हर्फ़े-ताज़ा की तरह क़िस्स-ए-पारीना कहूँ
कल की तारीख़ को मैं आज का आईना कहूँ
हर्फ़ेचश्मे-ताज़ा की तरह क़िस्ससाफ़ी से छलकती है मये-ए-पारीना कहूँ<br>जाँ तलबी कल की तारीख़ को सब इसे ज़हर कहें मैं आज का आईना इसे नौशीना कहूँ<br><br>
चश्मेमैं कहूँ जुरअते-साफ़ी से छलकती इज़हार हुसैनीय्यत है मये-जाँ तलबी <br>सब इसे ज़हर कहें मैं इसे नौशीना मेरे यारों का ये कहना है कि ये भी न कहूँ<br><br>
मैं कहूँ जुरअते-इज़हार हुसैनीय्यत है<br>मेरे यारों तो जन्नत को भी जानाँ का ये कहना है कि ये शबिस्ताँ जानूँमैं तो दोज़ख़ को भी आतिशकद-ए-सीना कहूँ<br><br>
मैं तो जन्नत को भी जानाँ का शबिस्ताँ जानूँ<br>ऐ ग़मे-इश्क़ सलामत तेरी साबितक़दमी मैं तो दोज़ख़ को भी आतिशकदऐ ग़मे-यार तुझे हमदमे-सीना दैरीना कहूँ<br><br>
ऐ ग़मेइश्क़ की राह में जो कोहे-इश्क़ सलामत तेरी साबितक़दमी <br>गराँ आता हैऐ ग़मे-यार तुझे हमदमे-दैरीना लोग दीवार कहें मैं तो उसे ज़ीना कहूँ<br><br>
इश्क़ की राह में जो कोहे-गराँ आता है<br>सब जिसे ताज़ा मुहब्बत का नशा कहते हैंलोग दीवार कहें मैं तो उसे ज़ीना ‘फ़राज़’ उस को ख़ुमारे-मये-दोशीना कहूँ<br><br>
सब जिसे ताज़ा मुहब्बत का नशा कहते हैं<br>मैं ‘फ़राज़’ उस को ख़ुमारे-मये-दोशीना कहूँ<br><br> क़िस्स-ए-पारीना = गुज़रा हुआ, पुराना क़िस्सा <br>नौशीना = शर्बत <br>शबिस्ताँ = शयनागार <br>आतिशकद-ए-सीना = सीना या छाती की भट्ठी <br>हमदमे-दैरीना = पुराना मित्र <br>कोहे-गराँ = मुश्किल पहाड़ <br>ख़ुमारे-मये-दोशीना = ग़ुजरी रात की शराब का ख़ुमार <br/poem>
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