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फिरंगिया / मनोरंजन प्रसाद सिंह

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<poem>सुन्दर सुघर भूमि भारत के रहे रामा, आज इहे भइलऽ भइल मसान रे फिरंगियाअन्न धन जन जल बल बुद्धि सब नास भइल, कौनो कौनों के ना रहल निसान रे फिरंगिया
जहँवाँ जहॅवाँ थोड़े ही दिन पहिले हीं होते ही होत रहे,
लाखों मन गल्ला और धान रे फिरंगिया
उहें आज हाय राम ! रामा मथवा पर हाथ धरि,बिलखि के रोवेला किसान रे फिरंगिया,
जँहवाँ के सात सौ लाख लोग सब खात ना अघात दू-दू साँझ भूखे रहे, रुपया से रहे मालमाल हरदम पड़ेला अकाल रे फिरंगियाउहें आज जेने-जेने अँखिया घुमाके देखुजेहु कुछु बॉचेला त ओकरो के लादि लादि, तेने-तेने देखबे कंगाल ले जाला समुन्दर के पार रे फिरंगिया
बनिज-बेपार सब एकउ रहल नाहींघरे लोग भूखे मरे, गेहुँआ बिदेस जाय, सब कर होई गइल नास कइसन बाटे जग के व्यवहार रे फिरंगियातनि-तनि बात लागि हमनी का हाय रामाजहॅवा के लोग सब खात ना अधात रहे, रूपयासेजोहिले बिदेसिया के आस रहे मालामाल रे फिरंगिया
आजो पंजबवा के करिके सुरतिया सेउहें आज जेने-जेने आँखिया घुमाके देखु,तेने, तेनेफाटेला करेजवा हमार देखबे कंगाल रे फिरंगियाभारत के छाती पर भारते के बचवन केबनिज-बेपार सब एकहू रहल नाहीं, बहल रकतवा के धार सब कर होइ गइल नास रे फिरंगिया
तनि-तनि बात लागि हमनी का हाय रामा,जोहिले बिदेसिया के आसरे फिरंगियाकपड़ों जे आवेला बिदेश से त हमनी कापेन्ह के रखिला निज लाज रे फिरंगिया आज जो बिदेसवा से आवे ना कपड़वा तलंगटे करब जा निवास रे फिरंगियाहमनी से ससता में रूई लेके ओकरे सेकपड़ा बना-बना के बेचे रे फिरंगिया अइसहीं दीन भारत के धनवालूटि लूटि ले जाला बिदेस फिरंगियारूपया चालिस कोट भारत के साले-साल,चल जाला दूसरा के पास रे फिरंगिया अइसन जो हाल आउर कुछदिन रही रामा,होइ जाइ भारत के नास रे फिरंगियास्वाभिमान लोगन में नामों के रहल नाहीं,ठकुरसुहाती बोले बात रे फिरंगिया दिन रात करे ले खुसामद सहेबावा के,चाटेले बिदेसिया के लात रे फिरंगियाजहॅवाँ भइल रहे राणा परताप सिंहऔर सुलतान अइसन वीर रे फिरंगिया जिनकर टेक रहे जान चाहे चलि जाय,तबहु नवाइब ना सिर रे फिरंगियाउहॅवे के लोग आज अइसन अधम भइले,चाटेले बिदेसिया के लात रे फिरंगिया सहेबा के खुशी लागी करेलन सब हीन,अपनो भइअवा के घात रे फिरंगियाजहवाँ भइल रहे अरजुन, भीम, द्रोण,भीषम, करन सम सूर रे फिरंगिया। उहें आज झुंड-झुंड कायर के बास बाटे,साहस वीरत्व दूर भइल रे फिरंगियाकेकरा करनिया कारन हाय भइल बाटे,हमनी के अइसन हवाल रे फिरंगिया धन गइल, बल गइल, बुद्धि आ, विद्या गइल,हो गइलीं जा निपट कंगाल रे फिरंगियासब बिधि भइल कंगाल देस तेहू पर,टीकस के भार ते बढ़ौले रे फिरंगिया नून पर टिकसवा, कूली पर टिकसवा,सब परटिकस लगौले रे फिरंगियास्वाधीनता हमनी के नामों के रहल नाहीं,अइसन कानून के बाटे जाल रे फिरंगिया प्रेस एक्ट, आर्म्स एक्ट, इंडिया डिफेन्स एक्ट,सब मिलि कइलस ई हाल रे फिरंगियाप्रेस एक्ट लिखे के स्वाधीनता छिनलस,आर्म्स एक्ट लेलस हथियार रे फिरंगिया इंडिया डिफेंस एक्ट रच्छक के नाम लेके,भच्छक के भइल अवतार रे फिरंगियाहाय हाय केतना जुवक भइलें भारत के,ए जाल में फांसे नजरबंद रे फिरंगिया केतना सपूत पूत एकरे करनावा सेपड़ले पुलिसवा के फंद रे फिरंगियाआजो पंजबवा के करि के सुरतिया,से फाटेला करेजवा हमार रे फिरंगिया भारते के छाती पर भारते के बचवन के,बहल रकतवा के धारे रे फिरंगियाछोटे-छोटे लाल सब बालक मदन सब,
तड़पि-तड़पि देले जान रे फिरंगिया
छटपट करि-करि बूढ़ सब मरि गइले,
मरि गइले सुघर जवान रे फिरंगिया
छटपट करि-करिबूढ़ सब मरि गइलें,मरि गइलें सुधर जवान रे फिरंगियाबुढ़िया मंहतारी महतारी के लकुटिया छिनाई छिनाइ गइल,
जे रहे बुढ़ापा के सहारा रे फिरंगिया
जुबती सती से प्राणपति हा बिलग भइल,
रहे जे जीवन के अधार रे फिरंगिया
जुवती सती से प्राणपति हाय बिलग भइल,रहे जे जीवन के आधार रे फिरंगियासाधुओं के देहवा पर चुनवा के पोति-पोतिरहि आगे लंगटा करौले रे फिरंगिया हमनी के पसु से भी हालत खराब कइले, पेटवा केबल रेंगअवले रे फिरंगियाहाय हाय खाय सबे रोवत विकल होके,पीटि-पीटि आपन कपार रे फिरंगिया जिनकर हाल देखि फाटेला करेजवा से,अँसुआ बहेला चहुँधार रे फिरंगियाभारत बेहाल भइल लोग के हाल भइल,
चारों ओर मचल हाय-हाय रे फिरंगिया
तेहू पर अपना कसाई अफसरवा के,
देले नाहीं कवनों सजाय रे फिरंगिया
तेहु पर अपना कसाई अफसरवन केदेले नाहीं कवनो सजाय रे फिरंगियाचेति जाउ चेति जाउ भैया रे फिरंगिया से, छोड़ि दे अधरम के पंथ रे फिरंगियाछोड़ि दे कुनीतिया सुनीतिया के बांह गहु,
भला तोर करी भगवन्त रे फिरंगिया
दुखिआ के आह तोर देहिआ भसम करी, जरिजूरि-भूनि होई होइ जइबे छार रे फिरंगियाएहीसे ऐही से त कहतानी भैया रे फिरंगी तोहे, धरम से करु तें विचार करू ते बिचार रे फिरंगिया
जुलुम कानून जुलुमी कानुन ओ टिकसवा के रद क दे,
भारत के दे दे तें स्वराज रे फिरंगिया
नाहीं त ई सांचे-सांचे तोरा से कहत बानी, चौपट
हो जाई तोर राज रे फिरंगिया
 
तेंतिस करोड़ लोग अंसुआ बहाई ओमें
बहि जाई तोर सभराज रे फिरंगिया
अन्न-धन-जन-बल सकल बिलाय जाई,
डूब जाई राष्ट्र के जहाज रे फिरंगिया
 
(टिप्पणी - इस कविता पर भारत में प्रतिबंध लगा दिया गया था। यहाँ से मारीशस भेजी गई और वहाँ से इसका प्रचार इस देश में भी हुआ।)
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