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मुद्दत से वो ख़ुशबूमुनव्वर जिस्म--हिना ही नहीं आईजाँ होने लगे हैंशायद तिरे कूचे की हवा ही नहीं आईकि हम ख़ुद पर अयाँ होने गले हैं
मक़्तल पे अभी तक जो तबाही नहीं आईब-ज़ाहिर तो दिखाई दे रहे हैंसरकार की जानिब से गवाही नहीं आईब-बातिन हम धुआँ होने लगे हैं
दुनिया का हर इक काम सलीक़े से किया हैजिन्हें तारीख़ भी लिखते डरेगीहम लोगों को बस याद-ए-ख़ुदा ही नहीं आईवो हंगामे यहाँ होने लगे हैं
जिस वक़्त कि वो हाथ छुड़ाने पे ब-ज़िद थाबहुत से लोग क्यूँ जाने अचानकउस वक़्त कोई याद दुआ ही नहीं आईतबीअत पर गिराँ होने लगे हैं
लहजे से न ज़ाहिर हो कि फ़ज़ा में मुर्तइश भी बे-असर भीहम उस से ख़फ़ा आवाज़-ए-अज़ाँ होने लगे हैंजीने की अभी तक ये अदा ही नहीं आई
रूख़्सत उसे बा-दीदा-ए-नम सियासी लोग अब चोले बदल कर तो दिया थाफिर इस से बड़ी दिल पे तबाही नहीं आईख़ुदा के तर्जुमाँ होने लगे हैं
मिलती तो ज़रा पूछते अहवाल ही उस काजो हम को जाँ से बढ़ कर चाहते थेअफ़्सोस इधर बादनसीब-ए-सबा ही नहीं आईदुश्मनाँ होने लगे हैं वो चिंगारी जो ऐन-ए-मुद्दआ हैतो हम शोला-ब-जाँ होने लगे हैं कभी थे नफ़ा अपना आप हम भी मगर अब तो ज़ियाँ होने लगे हैं अज़ीयत-कोशियों का फ़ैज़ देखोमसाइल दास्ताँ होने लगे हैं बयाँ हम को करेगा वो कहाँ सेकि हम तो ख़ुद बयाँ होने लगे हैं ज़रा आपे में रक्खो ख़ुद को ‘अक्मल’कि बच्चे अब जवाँ होने लगे हैं
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