भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
|रचनाकार=रंजना जायसवाल
|अनुवादक=
|संग्रह=जब मैं स्त्री हूँ / रंजना जायसवाल
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatStreeVimarsh}}
<poem>
मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ
तो मुझे दिखना भी चाहिए स्त्री की तरह
मसलन मेरे केश लंबेलम्बे,
स्तन पुष्ट और कटि क्षीण हो
देह हो तुली इतनी कि इंच कम न छटांक छटाँक ज्यादाबिलकुल बिल्कुल खूबसूरत डस्टबिन की तरह जिसमें
डाल सकें वे
देह,मन,दिमाग का सारा कचरा और वहमुस्कुराता रहे –“प्लीज -‘प्लीज यूज मी”|मी’।
मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ
तो मेरे वस्त्र भी ड्रेस-डेªस कोड केहिसाब से होने चाहिए जरा सा भी कम न महीनभले ही हो कार्य क्षेत्र कार्यक्षेत्र कोईआखिर मर्यादा से जरूरी ज़रूरी क्या है स्त्री के लिएऔर मर्यादा कपड़ों वस्त्रों में ही होती है |है।
मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ
तो मुझे यह मानकर चलना चाहिए
कि लक्ष्मण-रेखा के बाहर रहते हैंसिर्फ रावण इसलिए घर में केभीतर अपनों द्वारा चुपचाप लुटती रहना चाहिएक्योंकि स्त्री की चुप्पी से ही बना रहता है घर |घर।
मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ
तो मुझे देवी की तरह हर
हाल में आशीर्वाद की मुद्रा में रहना चाहिए
लोग पूजें या जानवर गोबर करें
शिकायत नहीं करनी चाहिए
अच्छी नहीं लगती लगतीं देवी मेंमनुष्य की कमजोरियां |कमजोरियाँ।
मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ
तो मुझे उन सारे नियमों-, व्रतोंपरम्पराओं का अंधानुकरण अन्धानुकरण करना चाहिएजिन्हें बनाया गया हैहै।हमारे लिए बिना यह सवाल उठाएउठाये
कि हमारे नियामकों ने
स्वयं कितना पालन किया इन नियमों का...सवाल करने पर हश्र होगा गार्गी या द्रौपदी सा।मैं स्त्री हूँ और द्रोपदी सा|जब मैं स्त्री हूँतो मुझे स्वतन्त्रप्रेम का अधिकार नहीं हैकरना होगा उसी से प्रेमजिसे वे चुनेंगे हमारे लिए...उनके प्रेम-प्रस्तावों कोस्वीकारना जरूरी है हमारे लिएपर हमारीपहल पर वेकाट लेंगे हमारे नाक-कान।मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँतो मुझे अपनीकोख परभी अपना अधिकार नहीं मानना चाहिए...उनके वारिस केलिए उनके नियत अनचाहे बूढ़े पुरुष से‘नियोग’ पुण्यहोगा भले ही भय से मूँदनी पड़े आँखेंऔर देह पीली पड़ जाएपर इच्छित पुरुष से गर्भ पाप होगाइतना कि त्यागनापड़ेगा उसे कर्ण और कबीर की तरह।मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँतो अपने लिए कोई क्षेत्रचुनना या महत्त्वाकाँक्षी होनापाप और स्वतन्त्र राय याइच्छा अपराध हैऐसे ही नहीं खारिज हैं कुछ स्त्री-नामसद्नामों से।मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँतो नहीं है अपनी देह भी मेरीवह ढलेगी उनके साँचे में,पलेगी उनके नियमों सेजी जाएगी उनकी मर्जी से...वरना वे कहेंगे उच्छृंखल,बिगड़ी...बद और बदनाम हमेंवे भले ही बनाते रहेहमारे न्यूड देह उघाडू ड्रेसेज,नीली फिल्में... बेचते रहे बाजार में... यूज और थ्रोका कल्चर अपनाते रहें...ईज़ाद करते रहें, नयी-नयीगलियाँ और शोषण के तरीके एक साथवे सब कुछ कर सकते हैं क्योंकि वे स्त्री नहीं हैंऔर जब वे स्त्री नहीं हैंतो कुछ भी सोच सकते हैंकह सकते हैं कर सकते हैं...।
</poem>