भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
जंगल से तुम कब आए हो, बहुत दिनों के बाद मिले।
पेड़ यहां यहाँ अब नहीं बचे हैं, डालें कहां हिलाओगे।
पत्तों का भी कहां ठिकाना, अब बोलो क्या खाओगे।
नहीं नलों में पानी आता, नदिया नाले हैं सूखे।
रहना होगा हाथी भैया, तुम्हें यहां यहाँ प्यासे भूखे।
कई शिकारी सर्कस वाले, पीछे पड़े तुम्हारे हैं।
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,103
edits