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[[Category:ग़ज़ल]]
उड़ गए बालो-पर उड़ानों में<br>सर पटकते हैं आशियानों में.|
जल उठेंगे चराग़ पल भर में<br>शिद्दतें चाहिये तरानों में|
शिद्दतें चाहिये तरानों में.  नज़रे बाज़ार हो गए रिश्ते<br>घर बदलने लगे दुकानों में.|
धर्म के नाम पर हुआ पाखंड<br>लोग जीते हैं किन गुमानों में.|
कट गए बालो-पर, मगर हमने<br>नक्श छोड़े हैं आसमानों में.|
वलवले सो गए जवानी के<br>जोश बाक़ी नहीं जवानों में.|
बढ़ गए स्वार्थ इस क़दर ‘देवी’<br>एक घर बंट गया घरानों में.|