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हँसे धुंध, बाहों में नभ को समोकर<br><br>
परवाज़ है पाखियों की कहीं भी<br>
न मिलता कबूतर का कोई कहीं पर<br>
शिथिलता है छाई, लगा रुक गया सब<br>