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{{KKGlobal}}गुरु साधु नृप के यहाँ शुद्ध भेंट ले जाय । {{KKRachnaदर्शन करने को प्रिया खाली हाथ न जाय ॥प्रफुलित चित मन मुदित हो पति वचन उर धार |रचनाकार=शिवदीन राम जोशी }}ले आई कछु माँग कर चावल मुठ्ठी चार ||{{KKCatKavita}}चार परोसन से चावल,[[Category:लम्बी रचना]] लाकर बोली न अबेर करो,{{KKPageNavigationकह देना हम कंगालों की, प्रभु भेंट यही स्वीकार करो |पीछे=कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 7|आगे=कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन वह दीन दयालु राम जोशी / पृष्ठ 9कृष्ण, उत्तर प्रसन्न चित्त देवेंगे,यह सूक्ष्म भेंट ग़रीबों की, वह हँसी खुशी से लेवेंगे |सारणी=कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी}}हैं भक्त जनों के ही भगवत,<poem> प्यारे हैं संत महात्मा के,गुरु साधु नृप तुम्हरे वह बाल सखा प्रेमी, तुम परम भक्त परमात्मा के यहांं शुद्ध भेंट ले जाय। |दर्शन करने को प्रिया खाली हाथ न जाय॥से उनके बड़े बड़े,प्रफुलित कननवस जन पापी भी उद्धार हुए,प्रेमी जिनके बन बन कर, नर भवसागर से पर हुए | == प्रस्थान और राह में चिन्तन ==
लोटा डोरी कंधे पर धार,
कर चले स्मरण गजानन्द का,
दिल लगन लगी हरि दर्शन की,
कछु पार न था उस आनन्द का |
मारग में यहीं विचारते थे,
न द्रव्य लिखा है ललाट मेरे,
जन्म सुधर जावेगा जब,
देखूंगा कृष्ण मुरार मेरे |
<poem>
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