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ज़मीं, फिर दर्द का ये सायबाँ <ref>छप्पर</ref> कोई नहीं देगा।तुझे ऐसा कुशादाँ <ref>विस्तृत</ref> आसमाँ कोई नहीं देगा।
अभी ज़िन्दा हैं, हम पर ख़त्म कर ले इम्तिहाँ सारे
जलेंगे चुपके-चुपके सब, धुआँ कोई नहीं देगा।
</poem>
<ref></ref>
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