भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|संग्रह=
}}
[[Category: कविता]]
<poem>
म्यांमार की सड़कों पर ख़ून नहीं था
रोशनी भी नहीं थी वहाँ
हवा बंद थी सीखचों में
और चुप थी दुनिया
चुप थे लोग
कि म्यांमार की सड़कों पर ख़ून नहीं था
म्यांमार के लोगों का ख़ून बहुत गाढ़ा नहीं था
बहुत मोटी नहीं थी उनकी ख़ाल
बहुत गहरी नहीं थी उनकी नींद
बहुत हल्के नहीं थे उनके सपने
बहुत रोशनी नहीं थी उनके घरों में
म्यांमार की सड़कों पर ख़ून नहीं था<br>एक लड़कीरोशनी भी नहीं जो हवा थी वहाँ<br>हवा बंद थी सीखचों सींखचों में<br>और चुप बहुत चीख़ नहीं रही थी दुनिया<br>वोचुप थे लोग<br>बस सोच रही थीकि म्यांमार सींखचों की बाबतसड़कों पर ख़ून नहीं था<br><br>की बाबतलोगों की बाबतम्यांमार की बाबत
जब कि म्यांमार के लोगों का की सड़कों पर ख़ून बहुत गाढ़ा नहीं था<br>बहुत मोटी नहीं जरूरत थी उनकी ख़ाल<br>हवा कीबहुत गहरी नहीं और हवा कैद थी उनकी नींद<br>सींखचों मेंबहुत हल्के नहीं लोग रहने लगे थे उनके सपने<br>भूखेबहुत रोशनी नहीं थी उनके घरों में<br><br>करने लगे थे आत्महत्याबग़ैर गिराए सड़कों पर एक बूंद ख़ून
पर म्यंमार की सड़कों पर ख़ून नहीं था।
</poem>