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|रचनाकार=अकबर इलाहाबादी
}}
[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>मुंशी कि क्लर्क या ज़मींदार<br>लाज़िम है कलेक्टरी का दीदार <br><br>
हंगामा ये वोट का फ़क़त है<br>मतलूब हरेक से दस्तख़त है<br><br>
हर सिम्त मची हुई है हलचल<br>हर दर पे शोर है कि चल-चल<br><br>
टमटम हों कि गाड़ियां कि मोटर<br>जिस पर देको, लदे हैं वोटर<br><br>
शाही वो है या पयंबरी है<br>आखिर क्या शै ये मेंबरी है<br><br>
नेटिव है नमूद ही का मुहताज<br>कौंसिल तो उनकी हि जिनका है राज<br><br>
कहते जाते हैं, या इलाही<br>सोशल हालत की है तबाही<br><br>
हम लोग जो इसमें फंस रहे हैं<br>अगियार भी दिल में हंस रहे हैं<br><br>
दरअसल न दीन है न दुनिया<br>पिंजरे में फुदक रही है मुनिया<br><br>
स्कीम का झूलना वो झूलें<br>लेकिन ये क्यों अपनी राह भूलें<br><br>
क़ौम के दिल में खोट है पैदा<br>अच्छे अच्छे हैं वोट के शैदा<br><br>
क्यो नहीं पड़ता अक्ल का साया<br>इसको समझें फ़र्जे-किफ़ाया<br><br>
भाई-भाई में हाथापाई<br>सेल्फ़ गवर्नमेंट आगे आई<br><br>
पंव पाँव का होश अब फ़िक्र न सर की <br>
वोट की धुन में बन गए फिरकी
</poem>
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