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Kavita Kosh से
जीभर वे मुस्काए
विद्रूप हुआ रूप।
'''निर्मलमना !'''
गोमुख के जल-सा
समझेंगे वे कैसे
जो नालियों में डूबे?
शान्त- विमल
शरदेन्दु -सा भाल
बहाती सुधा -धार
ओक से पिया प्यार।
हार जाएँगी
घुमड़तीं आँधियाँ